मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मुस्लिम व्यक्ति की दूसरी शादी को उसकी पहली पत्नी के प्रति क्रूरता माना है और उसे 5 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन ने कहा कि दूसरी शादी करने से पहली पत्नी को मानसिक तनाव और पीड़ा का सामना करना पड़ा है, जो कि क्रूरता के दायरे में आता है। हालांकि मुस्लिम कानूनों के अनुसार पति को दूसरी शादी करने का अधिकार है, लेकिन कोर्ट ने कहा कि उसे अपने इस कृत्य की जिम्मेदारी उठानी होगी। कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता मुस्लिम है। उसको इसका अधिकार है, परंतु उसे इसके लिए भुगतान करना होगा। दूसरी शादी से शिकायतकर्ता को मानसिक तनाव और पीड़ा पहुंची है। निश्चित रूप से यह क्रूरता के अंतर्गत आता है। इसलिए निचली अदालतों ने 5 लाख रुपये मुआवजा देने का जो फैसला दिया, वह उचित है।”
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके साथ ही, कोर्ट ने उसे अपने नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने का भी निर्देश दिया। यह आदेश पति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर दिया गया था। पति ने अपनी पहली पत्नी से 2010 में शादी की थी और 2018 में पत्नी ने उसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज किया था।
2021 में मजिस्ट्रेट ने पति को घरेलू हिंसा के लिए 5 लाख रुपये मुआवजा और नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण के लिए ₹25,000 प्रति माह देने का आदेश दिया था। इस फैसले के खिलाफ पति ने तिरुनेलवेली के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपील की, लेकिन वह खारिज हो गई। इसके बाद उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
पति ने अपने बचाव में तर्क दिया कि पहली पत्नी एक मेडिकल डॉक्टर है और उसको किसी प्रकार की घरेलू हिंसा का सामना नहीं करना पड़ा है। उसने दावा किया कि उसकी पहली शादी पहले ही तलाक के माध्यम से खत्म हो चुकी है, और शरिया काउंसिल ऑफ तमिलनाडु तौहीद जमात से तलाक प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया था।
हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पति ने अपनी पहली शादी के समाप्त होने का कोई न्यायिक प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया। कोर्ट ने माना कि पहली पत्नी के साथ उनकी शादी अभी भी कानूनी रूप से वैध है। कोर्ट ने यह भी माना कि मुस्लिम व्यक्ति को दूसरी शादी का अधिकार तो है, परंतु वह पहली पत्नी के लिए भरण-पोषण का हक बनाए रखता है। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पत्नी अपने पति को दूसरी शादी करने से रोक नहीं सकती है, परंतु उसे भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त है और वह वैवाहिक घर में न रहने का भी अधिकार रखती है। इस तरह, कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया और पत्नी को मुआवजा देने के फैसले को बरकरार रखा।