संघर्षरत देशों में गरीबी से जूझ रहें एक अरब लोग,

नई दिल्ली: दुनिया के कई युद्धरत इलाके में रह रहे करीब एक अरब लोग केवल गोलियों और बम से ही नहीं बल्कि, भूख, बीमारी और गरीबी की मौत से भी मर रहे हैं। वर्ल्ड बैंक की एक लेटेस्ट रिपोर्ट में सामने आया है कि युद्धरत देशों में न सिर्फ गरीबी चरम पर है बल्कि वहां के नागरिकों की औसत आयु, हेल्थ फैसिलिटी और इकोनॉमिक डेवलपमेंट पर भी बुरा असर पड़ा है। हाई इंटेंसिटी वाले संघर्षों के कारण ऐसे देशों की प्रति व्यक्ति आय ( Per Capita Income) में पांच वर्षों के अंदर 20 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है।

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर की लगभग एक अरब आबादी उन 39 देशों या क्षेत्रों में रहती है, जो पिछले कई सालों से युद्ध और अस्थिरता का सामना कर रहे हैं। ये देश फ्रैगिलिटी कनफ्लिक्ट एंड वायलेंस (FCS) कैटेगरी में आते हैं। ये सभी सब-सहारन अफ्रिका में हैं, जबकि कुछ पश्चिम एशिया, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में भी हैं।

युद्ध सिर्फ राजनीतिक या सैन्य चुनौती नहीं

इस हिंसाग्रस्त देशों में रहने वाले नागरिकों के लिए युद्ध सिर्फ एक राजनीतिक या सैन्य चुनौती नहीं बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा संकट बन चुका है। इन क्षत्रों में अगर लोग जिंदा बच भी जाते हैं तो यह संघर्ष जीवनभर के लिए भारी परेशानियों का सबब बन जाता है। अन्य विकासशील देशों में जहां उच्चतम गरीबी दर छह फीसदी है, वहीं, हिंसाग्रस्त देशों में यह करीब 40 फीसदी तक पहुंच गई है।

खाने की समस्या से जूझ रहें 20 करोड़ लोग

फ्रैगिलिटी कनफ्लिक्ट एंड वायलेंस देशों की तकरीबन 20 करोड़ लोग इस समय खाने की समस्या से जूझ रहे हैं। यह आंकड़े अन्य विकासशील देशों के मुकाबले 18 गुना ज्यादा है। यही नहीं अन्य देशों की तुलना में यहां शिशु मृत्यु दर ( Infant Mortality Rate) भी दोगुनी है। इसके साथ ही औसत जीवन प्रत्याशा (Average Life Expectancy) सात वर्ष कम यानी की 71 वर्ष के मुकाबले 64 वर्ष है। हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर अक्सर या तो पूरी तरह धवस्त हो जाता है या फिर लगातार तनाव की वजह से चरमराया रहता है। इन देशों में कई अस्पताल पूरी तरह से बंद हो चुके हैं। वहीं कई अस्पतालों में डॉक्टरों और दवाईयों की भारी कमी है।

अब भी संघर्ष की आग में जल रहे ये देश

  • सूडान दशकों से सिविल वॉर, तख्तापलट और जातीय हिंसा की मार झेल रहा है। साल 2023-24 में शुरू हुए नए सशस्त्र संघर्ष ने राजधानी खार्तूम सहित कई शहरों को खंडहर बना दिया है। लाखों लोग बेघर हुए हैं और यहां खाने की संकट गहरा रूप ले लिया है।
  • इथियोपिया का भी हाल बद से बदतर है। यहा टीगरेय इलाके में सरकार और विद्रोहियों बीच जमकर हुए संघर्ष में 2020 से लेकर अब तक करीब लाखों लोगों की मौत हुई है। इसके साथ ही हजारों की संख्या में लोगों ने पडोसी देशों में रह रहे हैं। इस वजह से यहां अकाल जैसी स्थिति बनी हुई है।
  • गाजा और वेस्ट बैंक में इजरायल-हमास के बीच जारी भीषण युद्ध ने पहले से ही संकट की मार झेल रहे इस क्षेत्र को और भी अधिक तबाह कर दिया है। गाजा में इस समय बेसिक हेल्थ, पानी और बिजली जैसी सुविधाएं लगभग पूरी तरह बर्बाद हो चुकी हैं। यहां भी लोग खाने की संकट का सामना कर रहे हैं।

यूक्रेन के भी बुरे हालात

वहीं, रूस और यूक्रेन के साथ लंबे समय से चल रहे संघर्ष ने यूक्रेनी अर्थव्यवस्था को बड़ा चोट पहुंचाया है। 2022 में यूक्रेन की जीडीपी में 29.2% की गिरावट आई, लेकिन 2023 में 5.3% और 2024 में 3% की वृद्धि हुई। हालांकि, 2025 में वृद्धि की गति धीमी होने की उम्मीद है, और यूक्रेन को अभी भी अपने सार्वजनिक क्षेत्र के घाटे को कम करने और विदेशी सहायता पर निर्भरता को कम करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

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