इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकी गुट हमास के बीच चल रहे युद्ध को 10 महीने हो चुके. लगभग तबाह हो चुके गाजा से इस बीच एक और डरावनी खबर आई. वहां पोलियो का केस दिख रहा है. माना जा रहा है कि युद्ध-प्रभावित इलाके में ये बढ़ सकता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन मुहिम चला रहा है, जिसमें तीन दिनों के भीतर गाजा पट्टी के लगभग साढ़े 6 लाख बच्चों को वैक्सीन दी जाएगी. यहां तक कि इसके लिए इजरायल भी अस्थाई युद्ध विराम पर राजी हो चुका. इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि पोलियो वायरस कितना खतरनाक है.
लेकिन गाजा नब्बे की शुरुआत में ही पोलियो-फ्री हो चुका था. अब वहां ये केस क्यों दिख रहे हैं. इसे समझने से पहले एक बार पोलियो क्या है, ये जानते चलें.
ये बीमारी पोलियो वायरस के कारण होती है, जो संक्रमित शख्स से होते हुए गंदे पानी, खाने या मल-मूत्र से होते हुए सेहतमंद तक पहुंच जाता है. ज्यादातर लोगों में इंफेक्शन हल्के लक्षणों के साथ खत्म हो जाता है. वहीं दो सौ में से एक मामला ज्यादा गंभीर होता है, जब वायरस ब्रेन और नर्वस सिस्टम पर असर डालता है. इससे आमतौर पर पैरों या एक पैर में स्थाई लकवा मार जाता है. गंभीर अवस्था में पैरालिसिस के कुछ घंटों के भीतर ही मरीज की मौत हो सकती है.
ये इलाका लगभग सालभर से युद्ध से जूझ रहा है. बेहद छोटे क्षेत्र में यहां घनी आबादी है. इससे साफ-सफाई की दिक्कत काफी बढ़ चुकी. वहीं ज्यादातर अस्पताल या तो ध्वस्त हो चुके, या उनमें कुछ ही सुविधाएं बाकी हैं. ऐसे में पोलियो वैक्सीन लेने वाले परिवार भी घटने लगे. WHO के ताजा डेटा के मुताबिक, साल 2022 में पोलियो के दो डोज के लिए 99% परिवार आए, जबकि इस बार ये 90 फीसदी से कम रह गया है.
हाइजीन सिस्टम लगभग खत्म होने के साथ ही गंदगी से फैलने वाले पोलियो वायरस का डर भी बढ़ चुका है. ऐसे में WHO अगले कुछ ही दिनों में लगभग साढ़े 6 लाख बच्चों को वैक्सीन देगा, जिनकी उम्र 10 साल या इससे कम है. इस दौरान सुबह 6 से दोपहर 3 बजे तक इजरायल और हमास की लड़ाई थमी रहेगी. सितंबर के आखिर में दूसरी डोज भी दी जाएगी.
दुनिया के सारे देश आधिकारिक तौर पर पोलियो-फ्री हो चुके, सिवाय पाकिस्तान और अफगानिस्तान के. दोनों ही देशों के पास पोलियो वैक्सीन का विरोध करने की बड़ी ही अजीब वजह रही. उनके धार्मिक नेताओं का कहना है कि पोलियो की वैक्सीन उनके लोगों को नपुंसक बनाने की साजिश है ताकि दुनिया से मुस्लिम आबादी कम हो जाए.
इस विरोध की शुरुआत साल 2000 से मानी जाती है. पोलियो का ग्लोबल टीकाकरण लगभग सालभर पहले ही शुरू हुआ था. तब कई कट्टरपंथी नेताओं ने वहां पर रेडियो के जरिए भ्रामक बातें फैलाईं. उन्होंने कह दिया कि पोलियो वैक्सिनेशन वेस्ट की साजिश है ताकि वो मुसलमानों की नसबंदी कर सकें. इसके बाद से ही डर बढ़ता चला गया. यहां तक कि पाकिस्तान सरकार को बहुतों बार पोलियो वैक्सीन ड्राइव रोकनी पड़ी.
अक्सर पाकिस्तान से खबरें आती हैं कि वहां पोलियो वैक्सीन दे रहे मेडिकल स्टाफ पर आम लोग हमला कर रहे हैं. अभियान से जुड़े 100 से ज्यादा लोगों की पाकिस्तान में हत्या हो चुकी. इसमें हेल्थ वर्करों से लेकर उनकी सुरक्षा कर रही पुलिस भी शामिल है. इस तरह के हमलों की घटनाएं तब से ज्यादा बढ़ गईं जब ये खुलासा हुआ था कि अमेरिकी CIA ने अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को साल 2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद में मारने से पहले इलाके में फर्जी हेपेटाइटिस वैक्सीन ड्राइव चलाई थी. इसके बाद भ्रम बढ़ गया कि हम मुहिम के पीछे कोई ऑपरेशन हो सकता है.
हेल्थ वर्करों पर हमले रोकने और देश को पोलियो-फ्री बनाने के लिए पाकिस्तान के सिंध में सालभर पहले एक कानून आया. इसके तहत अपने बच्चों को पोलियो की दवा न दिलाने वाले पेरेंट्स को एक महीने की जेल और 50 हजार पाकिस्तानी रुपयों का फाइन देना पड़ सकता है. वहीं अफगानिस्तान पर राज कर रहे तालिबान ने भी वैक्सीन ड्राइव पर जोर दिया. वहां भी समय-समय पर रूल आते रहते हैं लेकिन लोगों के विरोध के आगे कमजोर पड़ जाते हैं.
WHO का टारगेट है कि दुनिया को साल 2026 तक पोलियो-फ्री कर दिया जाए. हालांकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में वहम की वजह से ये मुमकिन नहीं हो सका. साथ ही युद्ध से जूझते देशों में भी ये समस्या दिख जाती है, जैसा गाजा में हुआ है.