हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने टिकट बांटना शुरू कर दिया है. अभी तक कई पार्टियों की टिकट लिस्ट सामने आ चुकी है. जब भी विधानसभा या लोकसभा चुनाव आता है तो पार्टी की ओर से मिलने वाली टिकट की चर्चा शुरू हो जाती है और टिकट लाने के बाद इसे लेकर विवाद होता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि आखिर ये टिकट क्या होती है और टिकट क्या मतलब होता है? क्या चुनाव से पहले सही में पार्टी की ओर से टिकट दी जाती है और किस तरह से दी जाती है. तो जानते हैं इन सवालों के जवाब…
दरअसल, जब भी कोई चुनाव लड़ता है तो पार्टी की ओर से टिकट दी जाती है तो इसका मतलब है कि कोई राजनीतिक पार्टी उस क्षेत्र में अपना प्रतिनिधि को चुन रही है और चुनाव लड़ने की इजाजत दे रही है. इसका मतलब होता है पार्टी अपना चुनाव चिह्न किसी विशेष व्यक्ति को अलॉट करती है. यानी वो उम्मीदवार उस चुनाव चिह्व के जरिए अपना चुनाव लड़ सकता है. इसके प्रोसेस को ही टिकट मिलना कहता है.
दरअसल, यह कोई टिकट नहीं होती है, लेकिन एक फॉर्म होता है, जिसे चुनाव आयोग को सब्मिट करना होता है. जब भी कोई उम्मीदवार किसी पार्टी की चिह्न पर चुनाव लड़ता है तो पार्टी उसकी जानकारी चुनाव आयोग को देती है, जिसके आधार पर ही उस उम्मीदवार को सिंबल अलॉट किया जाता है. कई बार पार्टी आधिकारिक लेटर हेड पर भी ये जानकारी देती है कि उस शख्स को क्षेत्र में सिंबल अलॉट के लिए चुना गया है. लेकिन, आधिकारिक रुप से चुनाव आयोग को ही पार्टी सिंबल की जानकारी देती है.
लेकिन, आधिकारिक तौर पर जब उम्मीदवार अपना पर्चा चुनाव आयोग में दाखिल करते हैं तो उन्हें पर्चे के साथ फॉर्म A और फॉर्म B देना होता है. इसे आधिकारिक टिकट कहा जा सकता है. दरअसल, एक तो पार्टी फॉर्म-ए के जरिए चुनाव आयोग को ये बताती है कि पार्टी की ओर से किस व्यक्ति को टिकट बांटने के लिए अधिकृत किया गया है. फिर एक और फॉर्म के जरिए सिंबल अलॉट किया जाता है. ये रिटर्निंग ऑफिसर को पार्टी की ओर से दिया जाता है, जिसमें कहा जाता है कि किस व्यक्ति को किस सीट के लिए सिंबल अलॉट किया गया है.
फॉर्म ए को पार्टी की ओर से चीफ इलेक्ट्रॉल ऑफिसर और रिटर्निंग ऑफिसर को देना होता है और हर उम्मीदवार के लिए अलग फॉर्म-बी रिटर्निंग ऑफिसर को देना होता है. इसमें अधिकृत व्यक्ति के साइन होते हैं. जब पार्टी ये फॉर्म भरकर चुनाव आयोग को दे देती है तो ये तय होता है कि पार्टी ने किसी व्यक्ति को किसी सीट के लिए सिंबल अलॉट कर दिया है. आप ऊपर देख सकते हैं कि यह फॉर्म कैसा होता है और इसमें क्या क्या जानकारी पार्टी की ओर से देनी होती है.
जब कोई उम्मीदवार बिना किसी दल के चुनाव लड़ते हैं तो उनका सिंबल अलॉट अलग तरीके से होता है. इस स्थिति में निर्दलीय किसी भी पार्टी की ओर से आरक्षित सिंबल के अलावा कोई भी चुनाव चिह्न ले सकते हैं. इसके लिए हर राज्य के हिसाब से एक फ्री सिंबल की लिस्ट होती है, जिसमें से निर्दलीय उम्मीदवार को चुनाव चिह्न चुनना होता है. उम्मीदवार को फॉर्म भरते समय तीन ऑप्शन देने होते हैं, जिसमें से एक चुनाव चिह्न चुनाव आयोग की ओर से अलॉट कर दिया जाता है. जैसे अगर किसी व्यक्ति ने आलमारी, बोतल और टेलीविजन ऑप्शन दिया है तो उसमें से एक चिह्न उम्मीदवार को दे दिया जाएगा.