छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंस की नई सुरक्षित पनाहगाह, वनभैंसों के संरक्षण में बारनवापारा ने लिखी नई कहानी

छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु वनभैंसा लौट रहा अपनी रौनक में, बारनवापारा बना संजीवनी, बारनवापारा अभयारण्य में फूली वनभैंसों की बगिया

बलौदाबाजार जिले का बारनवापारा अभयारण्य आज सिर्फ जंगली हाथी, तेंदुए या हिरणों की वजह से ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंस (Wild Buffalo) के संरक्षण की नई पहचान बनकर उभर रहा है। कभी विलुप्ति के कगार पर खड़ा यह प्रजाति अब यहां फिर से संख्या बढ़ाने लगा है। छह से बढ़कर दस तक पहुँचना छोटे आंकड़े जरूर लग सकते हैं, लेकिन यह आंकड़ा भविष्य की बड़ी उम्मीदों को जन्म देता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – छत्तीसगढ़ और वन भैंस का रिश्ता

छत्तीसगढ़ की पहचान सिर्फ अपनी आदिवासी संस्कृति, त्योहारों और प्राकृतिक संसाधनों तक सीमित नहीं है। यहां का राजकीय पशु – वन भैंस इस राज्य की जैव-विविधता का प्रतीक है। पुराने दस्तावेज बताते हैं कि एक समय पर महासमुंद, गरियाबंद, कांकेर और कवर्धा के जंगलों में इनकी बड़ी संख्या में मौजूदगी थी। लेकिन शिकार, आवासीय क्षेत्रों का अतिक्रमण और घटती घासभूमियों की वजह से इनकी संख्या लगातार कम होती गई। 2000 के दशक की शुरुआत तक स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि वन्यजीव विशेषज्ञों ने वन भैंस को क्रिटिकली एंडेंजर्ड श्रेणी में डाल दिया।

बारनवापारा क्यों चुना गया?

ETV भारत को DFO ने बताया कि, राज्य सरकार ने साल 2017 में हुई राज्य वन्यप्राणी बोर्ड की बैठक में यह निर्णय लिया कि वन भैंसों को एक ऐसी जगह सुरक्षित रूप से पुनर्वासित किया जाए जहां मानव दबाव अपेक्षाकृत कम हो और प्राकृतिक घासभूमि उपलब्ध हो। इसीलिए बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य को चुना गया। बलौदाबाजार जिले में फैला यह अभयारण्य लगभग 245 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और यहां साल, साजा, महुआ, बांस जैसी प्रजातियों के जंगलों के साथ-साथ घास के बड़े मैदान भी मौजूद हैं। यही वजह है कि इसे वन भैंस के लिए अनुकूल माना गया।

असम से छत्तीसगढ़ तक की यात्रा

ETV भारत को DFO ने बताया कि, भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से अनुमति लेने के बाद असम के मानस टाइगर रिजर्व से वन भैंसों को लाने का निर्णय लिया गया।

2020 में – एक नर और एक मादा वन भैंस लाई गई।
2023 में – चार मादा भैंसों को बारनवापारा लाया गया।

इन सभी को कोठारी परिक्षेत्र में बनाए गए 10 हेक्टेयर के सुरक्षित बाड़े में रखा गया। यह बाड़ा इस तरह से तैयार किया गया था कि इनमें घास, पानी, पेड़-पौधे और चिकित्सकीय देखरेख की सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हों।

नई जिंदगी की शुरुआत – प्रजनन की सफलता

साल 2024 बारनवापारा के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ।

यहां लाई गई मादा मानसी ने एक नर बच्चे को जन्म दिया।

दूसरी मादा ने एक मादा बच्चे को जन्म दिया।

यानी प्राकृतिक प्रजनन की शुरुआत हो गई। यह किसी भी संरक्षण कार्यक्रम के लिए सफलता का पहला संकेत होता है। 2025 में तीन और बच्चे हुए – दो मादा और एक नर। हालांकि इनमें से एक मादा बच्ची की आकस्मिक मौत हो गई, लेकिन बाकी सभी स्वस्थ हैं। आज यहां वन भैंसों की संख्या 6 से बढ़कर 10 हो गई है।

वनमण्डलाधिकारी गणवीर धम्मशील ने ETV भारत को बताया कि –”बारनवापारा अभयारण्य का वातावरण राजकीय पशु वन भैंसों के लिए पूरी तरह अनुकूल साबित हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में यहां लाई गई वन भैंसों ने प्राकृतिक रूप से प्रजनन शुरू किया है, जो संरक्षण की बड़ी उपलब्धि है। अब इनकी संख्या 6 से बढ़कर 10 हो गई है। यह इस बात का प्रमाण है कि यदि उचित वातावरण और सुरक्षा मिले तो कोई भी वन्य प्रजाति तेजी से बढ़ सकती है।”

उन्होंने आगे ETV भारत को बताया –”वन विभाग की टीम लगातार स्वास्थ्य परीक्षण, भोजन-पानी की व्यवस्था और निगरानी कर रही है। स्थानीय ग्रामीणों की भागीदारी भी इस संरक्षण अभियान का अहम हिस्सा है। हमारा लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में वन भैंसों की संख्या और बढ़ाई जाए और छत्तीसगढ़ को इस दृष्टि से एक मॉडल स्टेट बनाया जाए।”

विशेषज्ञों की राय

वन्यजीव विशेषज्ञ Dr. Gaurav Nihlani मानते हैं कि बारनवापारा में हो रही यह सफलता आने वाले सालों में पूरे छत्तीसगढ़ और मध्यभारत के लिए एक मॉडल बन सकती है। अगर यहां की वन भैंस आबादी लगातार बढ़ती है, तो इसे अन्य क्षेत्रों में भी बसाया जा सकता है। मैंने पिछले कई वर्षों से बारनवापारा में हो रहे कार्यक्रम में हिस्सा लिया है अक्सर में आते रहता हूँ।

सरकार और प्रशासन का विजन

वनमण्डलाधिकारी गणवीर धम्मशील का कहना है –

“बारनवापारा का वातावरण वन भैंसों के लिए पूरी तरह अनुकूल साबित हो रहा है। यह संख्या वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि यदि सही संरक्षण और अनुकूल माहौल दिया जाए तो वन्यजीव खुद को पुनर्जीवित कर लेते हैं।”

वन विभाग अब अगले पांच साल के लिए वन भैंस संरक्षण मास्टर प्लान पर काम कर रहा है। इसमें शामिल हैं:
20 हेक्टेयर का अतिरिक्त बाड़ा तैयार करना।
डीएनए प्रोफाइलिंग और वैज्ञानिक मॉनिटरिंग।
स्थानीय युवाओं को “ग्रीन गार्ड” के रूप में प्रशिक्षित करना।
पर्यावरण पर्यटन से जोड़कर संरक्षण के साथ रोजगार सृजन करना।

स्थानीय लोगों की भूमिका

बारनवापारा के आसपास बसे गांवों के लोग इस संरक्षण अभियान के अहम हिस्सेदार हैं।
स्थानीय ग्रामवासी बताते हैं कि पहले वे वन भैंस के बारे में सिर्फ किताबों या कहानियों में सुनते थे, अब वे इसे अपनी आंखों से देख पा रहे हैं।
गांव की महिला समितियां घास संरक्षण और अवैध शिकार पर नजर रखने में मदद कर रही हैं।
बच्चों के लिए स्कूलों में वन भैंस पर जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।

बारनवापारा SDO कृष्णु चंद्राकर का कहना

बारनवापारा परिक्षेत्र अधिकारी कृष्णु चंद्राकर ने ETV भारत को बताया – “वन भैंस संरक्षण हमारी प्राथमिकता है। बारनवापारा अभयारण्य की जलवायु और प्राकृतिक घासभूमि वन भैंसों के लिए बेहद उपयुक्त है। यही वजह है कि यहां उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। यह पूरे जिले और प्रदेश के लिए गर्व की बात है।”

उन्होंने आगे ETV भारत को कहा –”हमारी टीम दिन-रात वन भैंसों की निगरानी करती है। भोजन-पानी, स्वास्थ्य परीक्षण और सुरक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हाल ही में जो नन्हे बच्चे पैदा हुए हैं, उनकी देखरेख पशु चिकित्सक और वन अमला मिलकर कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि आने वाले वर्षों में बारनवापारा छत्तीसगढ़ में वन भैंस संरक्षण का सबसे बड़ा केंद्र बने।”

बाईट- वनमण्डलाधिकारी बलौदाबाजार गणवीर धम्मशील

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