बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के बाद ये माना जा रहा था कि नीतीश कुमार तुरंत दावा पेश करेंगे। लेकिन सोमवार को उन्होंने सिर्फ राज्यपाल से मुलाकात की। 19 नवंबर को विधानसभा भंग करने का अनुरोध किया, जीत की बधाई भी ली किंतु सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया। जिसके बाद सवाल यह है कि नीतीश ने ऐसा क्यों किया?
भाजपा और जदयू के बीच विधानसभा अध्यक्ष पद को लेकर तीखा विवाद होता दिख रहा है। इस बार, जदयू भी विधानसभा अध्यक्ष पद चाहती है, जबकि भाजपा इसे बरकरार रखना चाहती है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, विधानसभा अध्यक्ष पद भाजपा कोटे से हो सकता है। भाजपा की ओर से विजय सिन्हा विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए सबसे आगे चल रहे हैं।
जदयू के बिजेंद्र प्रसाद यादव सबसे आगे चल रहे हैं। हालांकि, श्रवण कुमार भी दावेदारी में सबसे आगे हैं। विधानसभा अध्यक्ष पद पर आम सहमति न बन पाने के कारण फिलहाल सरकार गठन की प्रक्रिया धीमी हो गई है। यही वजह है कि नीतीश कुमार ने दावा पेश करने से परहेज किया है।
इस बार जदयू भी विधानसभा अध्यक्ष पद चाहती है, जबकि भाजपा इसे बरकरार रखना चाहती है। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा की ओर से विजय सिन्हा का नाम सबसे आगे चल रहा है। जदयू की ओर से बिजेंद्र प्रसाद यादव की दावेदारी मजबूत है। जदयू की ओर से श्रवण कुमार के नाम पर भी चर्चा हो रही है।
सूत्रों की मानें तो एनडीए में मंत्रिमंडल का फार्मूला लगभग तय हो चुका है। जिसके हिसाब से भारतीय जनता पार्टी के कोट से 14 मंत्री और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड के खेमे से 13 मंत्री बनाए जा सकते हैं। इसके साथ ही चिराग की एलजेपी (आर) से 3 और जीतन राम मांझी की HAM व उपेन्द्र कुशवाहा की RLM से एक एक मंत्री बनाए जा सकते हैं।
नीतीश के नए मंत्रिमंडल में कुल 36 चेहरों के शामिल होने की संभावना है, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर समायोजन के लिए नई सरकार में लगभग पांच पद खाली रखने की योजना है। भाजपा की तरफ से दो उपमुख्यमंत्री नियुक्त करने की भी चर्चा है। इसका मतलब है कि गठबंधन तो तय है, लेकिन सरकार की दावेदारी अनिश्चित बनी हुई है।
पिछली सरकार की तरह भाजपा दो उपमुख्यमंत्री बनाए रख सकती है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा बने रहेंगे या नए चेहरे उतारे जाएंगे। अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान दोनों को “बड़ा आदमी” बनाने का वादा किया था, इसलिए उनकी दावेदारी मज़बूत मानी जा रही है।
इस चुनाव में एनडीए ने 70 सवर्ण विधायकों को जिताकर जीत हासिल की। जिनमें 32 राजपूत, 22 भूमिहार और दो कायस्थ शामिल हैं। राजपूत समुदाय के निर्वाचित सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसलिए किसी राजपूत को उपमुख्यमंत्री पद मिलने की संभावना सबसे ज्यादा मानी जा रही है।
अगर एनडीए तीन उपमुख्यमंत्री नियुक्त करने का फैसला करता है, तभी लोजपा (रामविलास) से किसी के लिए उपमुख्यमंत्री बनने की गुंजाइश होगी। लोजपा-आर के 19 विधायकों में से पांच राजपूत हैं, जबकि दलित वोट एनडीए के समग्र समीकरण में अहम भूमिका निभाते हैं। एनडीए गठबंधन में 14 दलित विधायक जेडीयू से, 12 भाजपा से, पांच लोजपा (आर) से और चार हम से हैं।
ऐसे में एक “दलित उप-मुख्यमंत्री” को लेकर जोरदार चर्चा चल रही है। लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि चिराग को यह मौका मिलेगा या किसी और दलित चेहरे को। इस बार एनडीए को शाहाबाद, सीमांचल, मिथिला, कोसी, चंपारण, तिरहुत, अंग और मगध समेत लगभग हर क्षेत्र में भारी समर्थन मिला है। माना जा रहा है कि इस बार उप-मुख्यमंत्री उन क्षेत्रों से चुना जा सकता है जिन्हें पिछली सरकारों में प्रमुखता नहीं दी गई थी।