पhhभाद्रपद शुक्ल एकादशी यानी बुधवार को परिवर्तनी एकादशी हैं। इस दिन आयुष्मान, सौभाग्य और रवियोग जैसे योग बन रहे हैं। इस शुभ संयोग में श्रद्धालु एकादशी व्रत करने के बाद अगले दिन पारण करेंगें। मान्यता है कि इस व्रत से नरक यात्रा से मुक्ति मिलती है और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। एकादशी तीन सितंबर बुधवार को भोर में 3:52 से शुरू होगी और पूरे दिन-रात्रि व्याप्त रहने के बाद चार सितंबर गुरुवार को सूर्योदय से पूर्व 4:21 पर समाप्त हो जाएगी। इस साल परिवर्तनी एकादशी 4 सितंबर को सुबह 4:08 बजे तक है, इसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी। द्वादशी पर इस साल उत्तराषाढा नक्षत्र रहेगा। इसके अलावा सौभाग्य योग भी बन रहा है। इस व्रत का पारण इस शुभ योग में होने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा रहेगी। इस दिन पूजा व दान का शुभ समय सुबह के दौरान लाभ व अमृत मुहूर्त में 06:00 ए एम से 09:10 ए एम तक व शाम को 05:05 पी एम से 06:40 पी एम तक रहेगा। व्रत तोड़ने का मुहूर्त 4 सितम्बर को 01:36 पी एम से 04:07 पी एम तक रहेगा। द्वादशी पर भी दान करना उत्तम माना जाता है। पद्मा एकादशी के दिन कथा के बाद जल, दही और चावल के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिए, साथ ही छाता ओर जूता भी देने चाहिए ।
क्या है परिवर्तनी एकादशी का महत्व
आपको बता दें कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चातुर्मास की योग निद्रा के दौरान करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को पद्मा एकादशी और जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है।इस बार चार शुभ योग होने से इस व्रत की महत्ता और बढ़ गई है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में करवट बदलते हैं।इस दिन निर्जला या फलाहार व्रत किया जाता है और फिर व्रत के बाद गुरुवार को द्वादशी में पारण किया जाता है।