दिल्ली हाईकोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को स्कूल में दाखिला देने वाली याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया है। इस याचिका में दिल्ली सरकार को म्यांमार से भारत आए रोहिंग्या शर्णाथियों के बच्चों को दाखिला देने के आदेश की मांग की गई थी। खंड पीठ के मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायाधीश तुषार राव गेडेला ने इस याचिका पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से संपर्क करने की बात कही है।
कोर्ट ने मौखिक तौर पर इस मामले में बयान देते हुए कहा कि हम इस मामले में शामिल नहीं होने जा रहे हैं। हाईकोर्ट में संपर्क करने से पहले सरकार से संपर्क करें। जो काम आप सीधे तौर पर नहीं कर सकते, उसे अप्रत्यक्ष तौर पर भी नहीं कर सकते। कोर्ट को इस मामले में माध्यम नहीं बनना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह बच्चे भारतीय नहीं हैं। यह मुद्दे में अंतर्राष्ट्रीय हित शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत है। इसके लिए भारत सरकार सबसे उपयुक्त है।
अदालत ने कहा कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा है। इससे देश की सुरक्षा जुड़ी हुई है। इसलिए बच्चों का मतलब यह नहीं है कि पूरी दुनिया यहां आ जाएगी। आदालत ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया बयान को भी शामिल किया है। जिसमें नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए की संवैधानिकता को बरकरार रखा गया था। यह असम समझौते के अंतर्गत आने वाले अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने से संबंधित है। उच्च न्यायालय की पीठ ने आज टिप्पणी की कि इस निर्णय के कारण राज्य में काफी उथल-पुथल और आंदोलन हुआ है।