ईद-मिलाद-उन-नबी आज, जानें इस्लाम में क्यों नहीं मिलती पैगंबर साहब की तस्वीर

इस्लाम धर्म के लोगों के लिए आज का दिन बहुत खास है. आज ईद-मिलाद-उन-नबी है. इसे ईद-ए-मिलाद-उन-नबी या ईद-ए-मिलाद भी कहा जाता है. यह दिन पैगंबर मोहम्मद के जन्म की खुशी के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें इस्लाम में अंतिम नबी माना गया है. यह पर्व इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाया जाता है. इस दिन मुसलमान मस्जिदों में जाकर पैगंबर मोहम्मद के संदेशों और मानवता के प्रति उनके योगदान को याद करते हैं. यह खास दिन मुसलमानों को समाज सेवा के लिए प्रेरित करता है और गरीबों व जरूरतमंदों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करता है.

पैगंबर मोहम्मद का जन्म अरब के रेगिस्तान के शहर मक्का में 570 ईस्वी में हुआ था. पैगंबर साहब के जन्म से पहले ही उनके पिता का निधन हो चुका था. जब वह 6 वर्ष के थे तो उनकी मां की भी मृत्यु हो गई. मां के निधन के बाद पैगंबर मोहम्मद अपने चाचा अबू तालिब और दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे. इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम बीबी आमिना था.
अक्सर ऐसे मौकों पर लोगों के जेहन में एक सवाल आता है कि आखिर इस्लाम में कहीं भी पैगंबर मोहम्मद की तस्वीर क्यों नहीं मिलती है. इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद की तस्वीर या चित्रण न करने का कारण धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों से जुड़ा है. यह मुख्य रूप से दो पहलुओं पर आधारित है.
इस्लाम बुतपरस्ती यानी मूर्ति पूजा के खिलाफ है. इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, पैगंबर साहब की छवि या मूर्ति बनाना और उसे पूजना या विशेष स्थान देना इस्लाम की एकेश्वरवाद (तौहीद) की अवधारणा के खिलाफ माना जाता है. जानकारों की मानें तो कुरान के 42वीं सूरे की 42 नंबर आयत में कहा गया है कि अल्लाह ने ही धरती और स्वर्ग बनाए हैं. फिर कोई इंसान उस अल्लाह को कैसे किसी तस्वीर में कैद कर सकता है. इसलिए इस्लाम में पैगंबर साहब की कोई तस्वीर या प्रतिमा नहीं मिलती है.
इस्लाम धर्म यह मानता है कि इंसानों द्वारा पैगंबर मोहम्मद की कोई तस्वीर या मूर्ति बनाना सही नहीं है. पैगंबर साहब को उनके कार्यों और शिक्षाओं के लिए याद किया जाना सही है. अदृश्यता और ध्यान के माध्यम से अल्लाह की बंदगी ज्यादा बेहतर ढंग से की जा सकती है.

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