क्या किसी भी निजी संपत्ति का सरकार सार्वजनिक हितों के लिए अधिग्रहण कर सकती है? इस सवाल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने मंगलवार को अहम फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि सभी निजी संपत्तियों को सार्वजनिक हित वाली घोषित नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकार हर संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती। हालांकि सार्वजनिक हित के मामलों में उसे समीक्षा करने का अधिकार है और ऐसी स्थिति में वह जमीन का अधिग्रहण भी कर सकती है। अदालत ने इसके साथ ही 1978 के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सामुदायिक हित के लिए राज्य किसी भी निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है।
संविधान के आर्टिकल 39(b) का अवलोकन करते हुए सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने यह फैसला दिया। 9 जजों की बेंच में से 7 ने बहुमत से फैसला दिया कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक हित के लिए अधिग्रहित नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा इस बेंच में जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस एससी शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की राय थी कि हर संपत्ति का अधिग्रहण नहीं हो सकता। वहीं बेंच में शामिल जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय अलग थी।
प्रधान न्यायाधीश ने सात न्यायाधीशों का बहुमत का फैसला लिखते हुए कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हैं और इसलिए सरकारों द्वारा इन पर कब्ज़ा नहीं किया जा सकता। बेंच के बहुमत के फैसले के अनुसार निजी स्वामित्व वाले सभी संसाधनों को सरकार द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकार हालांकि जनता की भलाई के लिए उन संसाधनों पर दावा कर सकती है जो भौतिक हैं और समुदाय के पास हैं। बहुमत के फैसले में कहा गया कि सरकार के निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकने की बात कहने वाला पुराना फैसला विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था।
उच्चतम न्यायालय के बहुमत के फैसले में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज किया गया जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को सरकार द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। इस तरह शीर्ष अदालत ने 1978 के बाद के उन फैसलों को पलटा, जिनमें समाजवादी विचार को अपनाया गया था और कहा गया था कि सरकार आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में ले सकती है।