वॉशिंगटन. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि वह ईरान के खिलाफ जारी इजरायल की जंग में शामिल होने पर दो सप्ताह के भीतर फैसला लेंगे। इस ऐलान के ठीक 36 घंटे बाद अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर हमला बोल दिया। इन हमलों में अमेरिका ने ईरान के तीन ठिकानों नतांज, फोर्दो और इस्फहान पर हमले किए। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि फोर्दो स्थित ईरान के परमाणु ठिकाने को पूरी तरह से तबाह कर दिया गया। यही वह ठिकाना है, जिसे लेकर कहा जा रहा था कि यह जमीन के काफी नीचे है और इस पर हमला करना आसान नहीं है।
अब सवाल यह है कि आखिर डोनाल्ड ट्रंप ने वार्ता और शांति की बातों के बीच कैसे अचानक से ईरान पर हमला कर दिया। द वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान समेत रूस, चीन जैसे दुनिया के कई देशों को चकमा देने के लिए दो सप्ताह तक का समय लेने की बात कही थी। उनके सीक्रेट प्लान की जानकारी वाइट हाउस में भी बहुत सीमित लोगों को थी। अमेरिका से ईरान तक पहुंचकर हमला करने में 18 घंटों का वक्त लगा था। इससे साफ है कि जिस समय डोनाल्ड ट्रंप ने दो सप्ताह के इंतजार की बात कही थी, उस दौरान हमले की तैयारी चल रही थी।
फिर उनके ऐलान के ठीक 36 घंटे बाद 7 बी-2 बॉम्बर्स के जरिए हमला बोल दिया गया। वाइट हाउस में ज्यादातर लोगों को इस अभियान की कोई जानकारी नहीं थी। इस संबंध में एयर फोर्स के जनरल डैन कायने ने बताया कि ईरान पर हमले के प्लान की जानकारी वॉशिंगटन में बहुत कम लोगों को थी। ज्यादातर लोगों को पता नहीं था कि हमला कब और कैसे अंजाम दिया जाएगा। वहीं एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप का दो सप्ताह के इंतजार वाला बयान तो ईरान का ध्यान भटकाने के लिए था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि वह अलर्ट न रहे।
हालांकि एक अधिकारी का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप के रवैये से भनक लग गई थी। उनका कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप करीब एक सप्ताह से वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों से पूछ रहे थे कि कैसे ईरान में सर्जिकल स्ट्राइक की जा सकती है। उनका कहना था कि आखिर कैसे जमीन पर सैनिक उतारने बिना ईरान पर ऐक्शन हो सकता है। उनका कहना था कि ऐसा तरीका बताएं जिससे व्यापक युद्ध में अमेरिका हिस्सा न बने और ईरान पर हमला भी कर दिया जाए।
दरअसल भटकाने के लिए डोनाल्ड ट्रंप लगातार कह रहे थे कि वह कूटनीतिक समाधान चाहते हैं। वह एक तरफ ईरान को अल्टिमेटम देते रहे तो वहीं कूटनीतिक वार्ता की बात भी करते रहे। उनके इस दोहरे रवैये की वजह थी कि वह अपने किसी भी प्लान की भनक नहीं लगने देना चाहते थे। अंत में वही हुआ और ईरान पर हमले की जानकारी अमेरिका ने खुद दुनिया को दी। उससे पहले किसी के पास ऐसी जानकारी नहीं थी।