कैसे होती है ड्रोन से डिलीवरी? खाने से लेकर चिट्ठी तक बदल रहा पहुंचने का तरीका

ड्रोन से डिलीवरी… कुछ सालों पहले तक ये किसी सपने जैसा लगता था, लेकिन अब ये हकीकत बन चुका है. ड्रोन का इस्तेमाल देशभर में कई सेक्टर्स में हो रहा है. साथ ही इन सर्विसेस का धीरे-धीरे विस्तार भी हो रहा है. अब ड्रोन का इस्तेमाल फुड डिलीवरी के साथ चिट्ठी पहुंचाने तक में हो रहा है. 

दिल्ली से सटे गुरुग्राम में कई जगहों पर ड्रोन के जरिए फुड डिलीवरी की जा रही है. कई जगहों पर इस सर्विस को शुरू करने की मंजूरी मिल गई है. वहीं डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट ने भी रिमोट एरिया में चिट्ठी पहुंचाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. 

पिछले महीने ही डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट ने इसे लेकर जानकारी दी थी. विभाग ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश में दो पोस्ट ऑफिस के बीच ड्रोन की सर्विस को टेस्ट किया है. इसके लिए डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट ने SKYE Air मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड के साथ पार्टनरशिप की है. 

क्या ड्रोन्स नई क्रांति ला सकते हैं? 

ये सब सुनने में बहुत ज्यादा फैसिनेटिंग लगता है, लेकिन काम कैसे करता है इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को होती है. कई लोगों का सवाल होता है कि ड्रोन के जरिए की जा रही डिलीवरी को रास्ते में हाईजैक कर लिया गया, तो क्या होगा. या फिर कुछ लोग सवाल करते हैं कि क्या ये ड्रोन्स सीधे उनके फ्लैट की बालकनी तक डिलीवरी करेंगे. 

इसके लिए हमने SKYE Air के CEO अंकित कुमार से बात की. अंकित ने बताया कि ड्रोन्स डिलीवरी सेक्टर में क्रांति लाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. खासकर उन इलाकों में जहां पहुंचना मुश्किल है, जैसे दूर-दराज के गांव या पहाड़ी क्षेत्र.  

‘यह तकनीक न केवल दवाई, खाने और जरूरी दस्तावेजों जैसी आवश्यक वस्तुओं की डिलीवरी को तेज करती है. बल्कि सड़क नेटवर्क पर निर्भरता को भी कम करती है. इससे सड़कों पर वाहन कम होंगे. विशेष रूप से हेल्थकेयर सेक्टर में ड्रोन का उपयोग क्रांतिकारी साबित हो सकता है, जहां समय पर डिलीवरी जान बचाने के लिए महत्वपूर्ण है.’

क्या ये सर्विस ऑटोमेटेड होती है या फिर कोई इन ड्रोन्स को ऑपरेट करता है? 

ड्रोन डिलीवरी के लिए SKYE Air जैसी कंपनियां हाईटेक ऑटोमेटेड सिस्टम और मैपिंग टेक्नोलॉजी जैसे स्काई UTM (अनमैन्ड ट्रैफिक मैनेजमेंट) का उपयोग करती है. ड्रोन्स GPS और AI का इस्तेमाल करते हुए पहले से तय रूट पर चलते हैं, जिससे वे ऑटोनॉमस काम करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में पैकेज को ड्रोन में लोड करना, उसके बाद ड्रोन का डेस्टिनेशन तक उड़तना और लॉस्ट पॉइंट पर पैकेज को रिसीव करना तक शामिल है. 

सिक्योरिटी के मद्देनजर इन ड्रोन्स को मॉनिटर किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम इंसानों की जरूरत पड़ती है. AI और IoT के जरिए इन ड्रोन्स को आसान और बेहतर ढंग से मैनेज किया जा सकता है. 

इंसानों के मुकाबले ड्रोन्स से डिलीवरी कितनी किफायती या खर्चीली है? 

ड्रोन से डिलीवरी की लागत पारंपरिक डिलीवरी तरीकों की तुलना में आमतौर पर कम होती है. अगर आप लास्ट मील डिलीवरी के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं, जो इसका खर्च कम आएगा. हालांकि, इस प्रक्रिया में ड्रोन टेक्नोलॉजी में इन्वेस्टमेंट शामिल नहीं है. इसके लिए आपको अच्छा-खासा निवेश करना होता है, जो बाद में डिलीवरी की लागत को कम करता है. 

ड्रोन्स के जरिए डिलीवीर में मुख्य रूप से प्रति डिलीवरी लगभग 30-40 रुपये खर्च आता है, जो सामान्य डिलीवरी शुल्क से कम है. स्काई एयर का अनुभव बताता है कि ड्रोन्स डिलीवरी में लगने वाले समय को 80% तक कम कर सकते हैं, जिससे यह लॉन्गटर्म में किफायती साबित होते हैं. इनका फायदा उन क्षेत्रों में मिलता है, जहां पारंपरिक डिलीवरी तरीके महंगे या अव्यवस्थित होते हैं. 

इस सर्विस को लोगों को नौकरी पर क्या असर होगा? 

ऑटोमेशन किसी भी इंडस्ट्री में काम करने वालों के लिए चिंता का विषय है. इसका पारंपरिक डिलीवरी करने वाले की नौकरी पर असर पड़ेगा. अगर आप दूर का सोचेंगे, तो ये काम करने के तरीके को बदल देगा और इससे नई नौकरियां पैदा होंगी. इसमें ड्रोन डेवलपमेंट, मेंटेनेंस, डेटा एनालिस्ट और लॉजिस्टिक मैनेजमेंट जैसी चीजें शामिल हैं. 

किसी भी सोसाइटी में ड्रोन खुद जाकर सामान डिलीवर नहीं करता है. बल्कि वो नजदीकी लैडिंग लोकेशन पर सामान डिलीवर करता है, जहां से स्काई वॉकर उस सामान को डोर स्टेप तक पहुंचाते हैं. स्काई वॉकर शब्द का इस्तेमाल उन लोगों के लिए होता है, जो ड्रोन के जरिए की जाने वाली डिलीवरी में सामान को आखिरी पड़ाव तक पहुंचाते हैं.

यानी सोसाइटी में डिलीवर करते हैं. ये भी एक नई जॉब होगी. यानी ड्रोन्स के इस्तेमाल से लोगों की नौकरी पर असर तो पड़ेगा, लेकिन इसके बदले कई दूसरे सेक्टर में नई नौकरियां आएंगी. इससे नए लोगों को अलग-अलग फील्ड में काम करने का मौका मिलेगा.

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