परमाणु समझौते की राह पर ईरान और अमेरिका, कितनी दूर है मंज़िल?

ईरान और अमेरिका के बीच दूसरे दौर की परमाणु वार्ता भी रोम में संपन्न हो गई है। हालांकि अभी यह खुलकर नहीं बताया गया है कि इसमें दोनों देशों में क्या सहमति बनी। इस बीच तीसरे दौर की वार्ता के लिए भी भूमिका तैयार की जाने लगी है। मगर यह वार्ता क्यों हो रही है, अमेरिका के लिए क्यों महत्वपूर्ण है, आइये जानते हैं।

Explainer : रोम : ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु मसले पर कूटनीतिक हलचल तेज हो गई है। रोम में दोनों देशों के बीच दूसरे दौर की बातचीत संपन्न हो चुकी है और अब तीसरे दौर की वार्ता की तैयारी है। इससे पहले ओमान में भी दोनों पक्षों के अधिकारी मिल चुके हैं। इन वार्ताओं को काफी सकारात्मक बताया जा रहा है। एक अमेरिकी अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि रोम में हुई चर्चा के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने सीधी मुलाकात की। अधिकारी ने आगे कहा कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हो रही इन चर्चाओं में अच्छी प्रगति देखने को मिली है।

ईरान के साथ परमाणु बातचीत: अमेरिकी लक्ष्यों का विश्लेषण

यह जानना ज़रूरी है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान के साथ परमाणु वार्ता क्यों करा रहे हैं। दरअसल, इस बातचीत के पीछे अमेरिका का मुख्य लक्ष्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगाम कसना और यह सुनिश्चित करना है कि तेहरान परमाणु हथियार बनाने में सफल न हो। अमेरिका, ईरान के साथ इस परमाणु वार्ता के माध्यम से कई उद्देश्यों को साधना चाहता है: परमाणु हथियारों के फैलाव को रोकना, मध्य पूर्व में स्थिरता कायम रखना, और आर्थिक व सैन्य दबाव का इस्तेमाल करके ईरान को एक मजबूत समझौते के लिए तैयार करना। हालांकि, ईरान ने स्पष्ट कर दिया है कि बातचीत सिर्फ उसके परमाणु कार्यक्रम के सैन्य पहलुओं तक ही सीमित रहनी चाहिए और उसके शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों को बंद करने पर कोई चर्चा नहीं होगी। आइए, इस पूरे मसले को विस्तार से समझते हैं।

  1. विश्व को परमाणु खतरे से बचाना

अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को संदेह है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम सैन्य उद्देश्यों के लिए हो सकता है, भले ही ईरान दावा करता हो कि यह शांतिपूर्ण है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने चेतावनी दी है कि ईरान परमाणु बम बनाने के करीब है, जिससे वैश्विक सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसलिए अमेरिका ईरान को नियंत्रित रखना चाहता है।

2.  डोनाल्ड ट्रंप की नीति

ट्रंप प्रशासन ने “अधिकतम दबाव” नीति अपनाई है, जिसमें ईरान को बातचीत के लिए मजबूर करने के लिए आर्थिक और सैन्य दबाव शामिल है। ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि वह ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह नष्ट करना चाहते हैं या नया, सख्त समझौता चाहते हैं, जिसमें शांति और स्थिरता हो, परमाणु हथियारों का प्रसार न हो। 

3.  क्षेत्रीय स्थिरता

ईरान का परमाणु हथियार विकसित करना मध्य पूर्व में हथियारों की दौड़ को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि सऊदी अरब जैसे अन्य देश भी परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर सकते हैं। यह क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा है।

4.  आर्थिक प्रतिबंध और दबाव

2018 में अमेरिका ने जेसीपीओए (संयुक्त व्यापक कार्य योजना) से हटकर ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए, जिससे ईरान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा। वार्ता के जरिए अमेरिका इन प्रतिबंधों में राहत देने की शर्त पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना चाहता है। ईरान की भी यही मांग है कि अमेरिका उस पर लगे प्रतिबंधों को हटा ले।

5.  ओमान की मध्यस्थता

ओमान जैसे देशों की मध्यस्थता से वार्ता का रास्ता खुला है, जिसे दोनों पक्ष सकारात्मक मान रहे हैं। यह वार्ता 2018 के बाद पहली उच्च-स्तरीय बातचीत है, जो तनाव कम करने और समझौते की संभावना को दर्शाती है। ओमान के बाद दूसरे दौर की वार्ता रोम में हुई है। अब तीसरे दौर की वार्ता के लिए भी जल्द ही सूचनाएं जारी होंगी। 

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