लोकसभा चुनाव में भाजपा को यूपी, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। इसके पीछे इन चर्चाओं को वजह माना गया था, जिनमें विपक्ष ने आरोप लगाया था कि भाजपा फिर से लौटी तो वह संविधान बदल देगी और आरक्षण को समाप्त कर देगी। इस बीच विपक्ष ने एक बार फिर से आरक्षण के मसले को उठाना शुरू कर दिया है और जातिगत कोटे को 50 फीसदी से ज्यादा किए जाने की मांग कर दी है। फिलहाल इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के चलते जातिगत आरक्षण में 50 फीसदी की सीमा लागू होती है। कांग्रेस ने पिछले दिनों इस लिमिट को खत्म करने की मांग की थी। अब शरद पवार ने भी ऐसी ही मांग की है और कहा कि हम इसे समर्थन देते हैं।
इस तरह उन्होंने संकेत दिया है कि महाराष्ट्र के असेंबली इलेक्शन में आरक्षण की लिमिट पार करने का मुद्दा गूंजेगा। पहले ही राज्य में मराठा कोटे और ओबीसी आरक्षण को लेकर तकरार की स्थिति है। राज्य सरकार मराठाओं को ओबीसी सर्टिफिकेट जारी कर रही है। वहीं ओबीसी वर्ग का कहना है कि मराठा आरक्षण देना है तो उनकी लिमिट से अलग दिया जाए। इस तरह 50 फीसदी लिमिट को तोड़ने की मांग उठ रही है। बता दें कि EWS कोटे को मिलाकर सभी राज्यों में कम से कम 60 फीसदी आरक्षण पहुंच चुका है। बिहार में तो यह 75 फीसदी तक हो गया था, जिस पर हाई कोर्ट से रोक लगी थी और अब तक सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है।
इस बीच कांग्रेस समेत विपक्ष ने संकेत दिया है कि आरक्षण का मसला फिर से गूंजेगा। शरद पवार ने सोमवार को कहा कि यदि केंद्र सरकार 50 फीसदी लिमिट खत्म करने के लिए बिल लाती है तो महाराष्ट्र के सभी दल उसका साथ देंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास ही यह पावर है कि वह 50 फीसदी की लिमिट को समाप्त कर दे। यदि मोदी सरकार महाराष्ट्र समुदाय को आरक्षण दे तो हम उसका समर्थन करेंगे। इसके अलावा उन्होंने महाराष्ट्र सरकार पर भी दबाव बनाते हुए कहा कि उन्हें ओबीसी और मराठा आरक्षण को लेकर सभी दलों की मीटिंग बुलानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मीटिंग में विपक्ष के सभी दल मौजूद रहेंगे।
पवार ने कहा कि चीफ मिनिस्टर को मराठा कोटे के लिए आंदोलन कर रहे मनोज जारांगे पाटिल और छगन भुजबल जैसे ओबीसी नेताओं को बुलाना चाहिए। हमें इस मीटिंग में आरक्षण के मसले पर समाधान को लेकर चर्चा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह समस्या रही है कि जब भी आरक्षण 50 फीसदी पार करता है तो उस पर सुप्रीम कोर्ट की 50 फीसदी वाली लिमिट लागू हो जाती है। इसलिए केंद्र सरकार ही इस मामले में कुछ कर सकती है।