दिल्ली में प्रदूषण की मार को देखते हुए उपराज्यपाल विनय सक्सेना ने मुख्यमंत्री आतिशी को पत्र लिखा है। एलजी ने प्रदूषण कम करने में मदद के लिए सीडीवी का उपयोग करने का सीएम से आह्वान किया। एलजी ने प्रदूषण से निपटने के लिए पर्याप्त मशीनरी नहीं होने का मुद्दा भी उठाया।
राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता के ‘बहुत खराब’ श्रेणी में होने पर दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने चिंता जताई है। उन्होंने इस संबंध में गुरुवार को मुख्यमंत्री आतिशी को एक पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने प्रदूषण कम करने में मदद के लिए नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों (सीडीवी) का उपयोग करने का आह्वान किया।
पत्र में एलजी सक्सेना ने प्रदूषण से निपटने के लिए पर्याप्त मशीनरी नहीं होने का मुद्दा भी उठाया। लिखा, “डीपीसीसी ने मशीनरी की कमी के बारे में सूचित किया। इस वजह से सीएक्यूएम, राज्य सरकार और अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा लागू किए गए विभिन्न उपायों को प्रभावकारी बनाने में बाधा हो रही है।
उन्होंने प्रदूषण शमन गतिविधियों के लिए 1 नवंबर से फरवरी के अंत तक सीडीवी का उपयोग करने का आह्वान किया। पत्र में लिखा, ”मैं सुझाव दूंगा कि संभागीय आयुक्त को सीडीवी की सेवाओं को विशेष रूप से उन लोगों को, जो 31 अक्टूबर 2023 को लगे हुए थे, चार महीने की अवधि के लिए वापस बुलाने और उन्हें वायु प्रदूषण शमन गतिविधियों में शामिल करने की सलाह दी जाए।”
उन्होंने सीडीवी के स्वयंसेवकों के मुद्दे पर भी गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “उसी समय मैंने उनकी आजीविका संबंधी चिंताओं का मुद्दा भी उठाया था। सरकार से इस पर गंभीरता से ध्यान देने के लिए कहा था। मैंने कहा कि था कि सीडीवी को काम की आवश्यकता है। सुझाव दिया गया था कि सरकार उनके मुद्दे को तर्कसंगत, कानूनी और गैर-पक्षपातपूर्ण तरीके से सुलझाए। इसमें एससी, एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस श्रेणियों के लिए आरक्षण मानदंडों का पालन करे।”
इस बीच, दिल्ली में हवा की गुणवत्ता पहले ही ‘बहुत खराब’ गुणवत्ता तक गिर गई है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के अनुसार, गुरुवार सुबह वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 385 दर्ज किया गया।
विशेषज्ञों ने बताया है कि पराली जलाना, हालांकि एक गंभीर मुद्दा है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है, लेकिन दिल्ली में वायु प्रदूषण के पीछे यह एकमात्र कारण नहीं है। शहर में प्रदूषण फैलाने में कई अन्य कारक भी योगदान करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, किसान पराली जलाने का सहारा लेते हैं, क्योंकि दो फसलों के बीच का अंतर बहुत कम होता है और किसानों के पास इस समस्या से निपटने के लिए सुविधा का अभाव होता है।