पति की मौत के बाद मृतक आश्रित में नौकरी पाने वाली महिला को बच्चों को गुजारा भत्ता देना होगा। यह आदेश कानपुर नगर की पारिवारिक न्यायालय-तीन के अपर प्रमुख न्यायधीश आलोक कुमार ने दिया है। नाबालिग बच्चों ने देखभाल न करने पर मां के खिलाफ दादी के सहयोग से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। दादी और चाचा के साथ रह रहे दोनों नाबालिग बच्चों ने अपनी मां से जीने का अधिकार मांगने के लिए गुजारा भत्ता मांगा था।
बच्चों ने कोर्ट को बताया कि शहर के जीटी रोड के कृष्णापुरम निवासी उनके पिता रितेश कुमार का निधन बीमारी की वजह से 18 जुलाई 2015 को हो गया था। वह खेती से जुड़े एक विभाग में नौकरी करते थे। उनकी मौत के बाद बच्चों की मां कविता सिंह की इसी विभाग में नौकरी लग गई। मृतक आश्रित कोटे में मिली नौकरी के लिए बच्चों के दादा-दादी ने एनओसी भी दी थी। बच्चों ने कोर्ट का बताया कि नौकरी लगने के बाद मां ने आय का पूरा हिस्सा खुद पर खर्च करना शुरू कर दिया। बच्चों ने बताया कि वह अपने भरण पोषण पर दादी ऊषा आर्या पर निर्भर हैं। दोनों ने 15-15 हजार रुपये गुजारा भत्ता की मांग की थी।
बच्चों के गुजारा भत्ता मांगने के जवाब में कविता सिंह ने कोर्ट को बताया कि पति की बीमारी के बाद उसका ससुराल में उत्पीड़न होने लगा था। सास, ससुर और देवर ने पति की मौत का मेडिक्लेम, पेंशन और पीपीएफ का पैसा ले लिया। इसकी रिपोर्ट भी पुलिस में दर्ज कराई थी। 2017 में ससुराली पक्ष ने उनके बच्चों व अन्य सामान रख लिया। उन्हें घर से बाहर निकाल दिया था। उसने कोर्ट से कहा कि बच्चे चाहें तो उनके साथ रह सकते हैं। उनकी देखभाल में कमी नहीं आएगी।
अधिवक्ता आलोक कुमार मिश्रा ने बताया कि कोर्ट ने सभी पक्षों की बात सुनकर फैसला दिया कि मां को अपने बच्चों को हर महीने की 10 तारीख तक पांच-पांच हजार रुपये गुजारा भत्ता देना होगा। यह भुगतान दोनों बच्चों के वयस्क होने तक दिया जाता रहेगा।