पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम का बढ़ता खतरा, नोएडा के साइकोलॉजिस्ट ने फोन की लत को बताया जिम्मेदार

आजकल लोग सोशल मीडिया पर घंटों समय बिता देते हैं। रील्स देखने या फिर फेसबुक-इंस्टा चलाने में लोगों का पूरा दिन या रात चली जाती है। फोन की लत ऐसी है कि कई लोग बाथरूम में भी फोन चलाते हैं। लंबे समय तक फोन चलाने से सिरदर्द तो होता ही है और दिमाग पर भी इसका बुरा असर भी होता है। नोएडा के हेडस्पेस हीलिंग की फाउंडर और साइकोलॉजिस्ट जया सुकुल ने हिंदुस्तान टाइम्स को इंटरव्यू दिया। इस दौरान उन्होंने बताया कि आजकल लोगों को फोन की बुरी लत लग चुकी है और ये दिल-दिमाग के लिए बड़ा खतरा बन चुका है। इससे पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम का खतरा बढ़ रहा है।

क्या है पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम

पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम का मतलब है आपका दिमाग सही तरीके से चीजों को समझ नहीं पा रहा। जया सुकुल के मुताबिक, आप सोशल मीडिया पर लगातार जब इधर से ऊधर जाते हैं या फटाफट जल्दी ऐप्स खोलकर अपना काम करते हैं, ऐसे में दिमाग में कन्फ्यूजन पैदा होती है। दिमाग एक चीज पर फोकस नहीं कर पाता है और फिर शरीर में बेचैनी होने लगती है। जब आप बिना फोन के कुछ देर रहते हैं तो आपको जिंदगी बेरंग लगने लगेगी और फिर से फोन चलाने की इच्छा होगी। असल में बिना फोन के कुछ करने का मन नहीं करेगा।

दिमाग में बदलाव

साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि आजकल की लाइफस्टाइल, सोशल मीडिया और डिजिटल एक्सपोजर के कारण दिमाग में भी कई बदलाव आ चुके हैं। अब दिमाग एक चीज पर फोकस नहीं कर पाता है और चीजों को समझने में समय लगता है। दिमाग में एक तरह की क्रेविंग पैदा होती है, जो फोन चलाने को मजबूर कर देती है। दिमाग में ये बदलाव शरीर की एनर्जी भी खत्म कर देते हैं और स्ट्रेस लेवल बढ़ाते हैं।

अन्य साइड इफेक्ट्स

पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम खासतौर पर यंग और 30 से 40 साल के बीच वाले लोगों में देखने को मिल रहा है। पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम को इंटरनेट एडिक्शन नहीं कहा जा सकता बल्कि ये आपकी क्वालिटी लाइफ को खत्म कर देता है। साथ ही इससे आपके रिश्ते, इमोशन और डेली लाइफ पर फर्क पड़ता है। इसके अलावा पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम में नींद की कमी, एंग्जायटी, स्ट्रेस, फोकस न कर पाना, बेचैनी महसूस करना, उदास रहना शामिल है।

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