अब कर्नाटक में एंट्री बंद! राज्य सरकारों का CBI पर ही चलता है जोर, ED पर क्यों नहीं?

कर्नाटक में भी अब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई राज्य सरकार की सहमति लिए बिना राज्य में जांच नहीं कर पाएगी. दरअसल, कर्नाटक में राज्य मंत्रिमंडल ने गुरुवार को राज्य में सीबीआई को बिना परमिशन जांच करने की अनुमति देने वाली अपनी पिछली अधिसूचना को वापस लेने का फैसला किया है. हालांकि, अभी कर्नाटक में MUDA भूमि घोटाले मामला गर्माया हुआ है, ऐसे में लोग इसे राजनीतिक फैसला मान रहे हैं. 

सीबीआई की एंट्री एक और राज्य में बंद होने के बाद अब सवाल है कि आखिर किन नियमों के तहत राज्य सरकारें सीबीआई को रोक देती हैं और ऐसा अन्य जांच एजेंसी ईडी के साथ क्यों नहीं होता है? समझते हैं पूरा गणित…

किस नियम से सीबीआई की एंट्री बंद की जाती है ये जानने से पहले जानते हैं कि सीबीआई के जन्म की क्या कहानी है… सीबीआई की उत्पत्ति कहानी विशेष पुलिस स्थापना (एसपीई) से शुरू हुई है, जिसे 1941 में भारत सरकार की ओर से स्थापित किया गया था. उस समय एसपीई का काम दूसरे वर्ल्ड वॉर में भारत के युद्ध और आपूर्ति विभाग के साथ लेन-देन में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करना था. 

वॉर खत्म होने के बाद भी केंद्र सरकार के कर्मचारियों की ओर से रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने के लिए एक केंद्र सरकार की एजेंसी की आवश्यकता महसूस की गई. इसलिए 1946 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम लागू किया गया. मामलों की जांच करने की सीबीआई की शक्ति इसी अधिनियम से प्राप्त हुई है. 

जिस अधिनियम के तहत सीबीआई को शक्तियां दी गई हैं, उसी अधिनियम में राज्य में जांच को लेकर एक बात भी कही गई है. दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 की धारा 6 के अनुसार, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को अपने अधिकार क्षेत्र में जांच करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों से सहमति की आवश्यकता होती है. लेकिन, सीबीआई स्वत: संज्ञान से सिर्फ केंद्र शासित प्रदेशों में ही जांच कर सकती है. 

कई राज्य सरकारों ने पहले से ही सीबीआई को जांच करने के लिए सामान्य सहमति दे रखी है कि वो राज्य में जांच कर सकती है. ऐसा ही कर्नाटक में था. लेकिन, अब यहां राज्य सरकार ने इस सहमति को वापस ले लिया है और अब अब जांच से पहले अनुमति लेनी होगी. 

जब पश्चिम बंगाल सरकार ने सीबीआई की एंट्री पर बैन लगाया गया था, उस वक्त ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि DSPE एक्ट की धारा 4 के अनुसार, भ्रष्टाचार के मामलों को छोड़कर DSPE की निगरानी के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है.

कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, DSPE केवल उन अपराधों की जांच करने का हकदार है, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया. साथ ही कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 5 के तहत DSPE की शक्तियों को किसी भी राज्य तक बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह राज्य सरकार की सहमति के अधीन है. 

दरअसल, डीएसपीई में स्टेट से सहमति लेने का प्रावधान होने की वजह से सीबीआई को सहमति लेनी होती है. लेकिन, ईडी के साथ नहीं है. बता दें कि ईडी प्रेवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत काम करती है. वहीं, पीएमएलए ईडी को राज्य सरकारों की सहमति के बिना देश भर में अपने व्यापक कार्यक्रम के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान लेने की अनुमति देता है. एक मामले में मद्रास कोर्ट ने राज्य से अनुमति लेने की बात कही थी, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सस्पेंड कर दिया था. 

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