भारत की अर्थव्यवस्था के लिए रघुराम राजन की सलाह,चीन से कॉम्पिटिशन करने की जरूरत

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कहा है कि भारत एक ग्लोबल प्लेयर बनने की आकांक्षा रखता है। ऐसे में उसे पाकिस्तान के साथ कॉम्पिटिशन करने से बचना चाहिए और इसके बजाय चीन के साथ कॉम्पिटिशन करनी चाहिए। इसके अलावा, वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में 7.4% और पूरे वर्ष के लिए 6.5% की मजबूत जीडीपी बढ़ोतरी के बीच उन्होंने भारत की जीडीपी को लेकर कहा कि भारत के लिए यह समय अभी है, लेकिन हमें इसका लाभ उठाना होगा।

भारत की विकास गाथा पर रघुराम राजन

इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में राजन ने कहा, “भारत की विकास दर अच्छी है, लेकिन हमें और अधिक की आवश्यकता है…हमें 2027 तक विकसित भारत बनने के लिए 8%-9% की वृद्धि की आवश्यकता है क्योंकि हम अपेक्षाकृत गरीब राष्ट्र हैं”। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों से शुक्रवार को पता चला कि हाल ही में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था वास्तविक रूप से 6.5 प्रतिशत बढ़ी है। एनएसओ के दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था 2024-25 में 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 6.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया था। 2023-24 में भारत की जीडीपी में 9.2 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि हुई, जो लगातार 100 प्रतिशत रही।

इस सेक्टर में काम करने की जरूरत

इंटरव्यू में राजन ने कहा, “पाकिस्तान के साथ संघर्ष के बारे में एक चिंता यह है कि इसने दुनिया के इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक स्थिरता के बारे में सवाल खड़े कर दिए हैं। साथ ही, आप जानते हैं, एक तरह से इसने हमें भी अपने ही कतार में खड़ा कर दिया है। हमें इससे बचने की जरूरत है क्योंकि हमें खुद को एक बहुत बड़े ग्लोबल प्लेयर के रूप में देखने की जरूरत है।” राजन ने कहा, “हमें चीन का कॉम्पिटिटर बनना चाहिए न कि पाकिस्तान का। हमें पाकिस्तान के साथ एक क्लब के रूप में रखने के बजाय भारत-चीन क्लब होना बेहतर है। और फिर लोगों के दिमाग में हमारी स्थिति एक तरह से ऊंची हो जाएगी।” वे आगे कहते हैं, ”मुझे लगता है कि लोग निवेश करने के लिए जगह तलाश रहे हैं और भारत के लिए कई चीजें सही चल रही हैं। इसमें एक बड़ा घरेलू बाजार भी शामिल है। आप जानते हैं, ऐसे सेक्टर हैं जिन पर हमें काम करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, यदि हम अपने विश्वविद्यालयों की क्वालिटी में सुधार करना चाहते हैं, तो हमें विश्वविद्यालयों के भीतर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी फोकस करने की आवश्यकता है।”

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