रेलवे मंत्रालय ने 52 वंदे भारत ट्रेनों में अत्याधुनिक ‘कवच 4.0’ एंटी-कोलिजन सिस्टम लगाने का फैसला किया है। यह कवच सिस्टम एक स्वदेशी रूप से विकसित ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (एटीपी) तकनीक है, जिसे भारतीय उद्योग के सहयोग से रिसर्च डिजाइन और स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) द्वारा डिजाइन किया गया है। वर्तमान में वंदे भारत ट्रेनों में कवच 3.2 संस्करण का उपयोग किया जा रहा है, जिसे जल्द ही 4.0 में अपग्रेड किया जाएगा। रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी दी कि इस प्रक्रिया में कुछ समय लगेगा, लेकिन यह काम युद्ध स्तर पर चल रहा है। हाल के दिनों में हुईं रेल दुर्घटनाओं के बाद यात्रियों की सुरक्षा के लिए यह कदम काफी जरूरी माना जा रहा है।
न्यूज 18 की रिपोर्ट्स के अनुसार, अब तक 1,465 किलोमीटर के रेलवे ट्रैक पर कवच सिस्टम स्थापित किया जा चुका है और इसे 121 इंजनों पर भी लगाया गया है। आगरा मंडल ने मथुरा (स्टेशन को छोड़कर) और पलवल के बीच 80 किलोमीटर लंबे सेक्शन पर कवच नेटवर्क स्थापित किया है, जहां कुछ इंजनों और ट्रेनों पर इसका परीक्षण चल रहा है।
कवच 4.0 को विभिन्न कठिन इलाकों में सफलतापूर्वक परीक्षण के बाद रेलवे मंत्रालय ने इसे अधिक व्यापक रूप से लागू करने का निर्णय लिया है। पहाड़ी क्षेत्रों, समुद्र तट, बर्फबारी वाले इलाकों और घने जंगलों में इसके परीक्षण सफल रहे हैं, जिससे इस तकनीक को मंजूरी मिली है। आरडीएसओ द्वारा मंजूरी मिलने के बाद, मंत्रालय ने इसे दो और महत्वपूर्ण रेल मार्गों पर स्थापित करने की योजना बनाई है।
रेलवे मंत्रालय का लक्ष्य है कि 5,000 किलोमीटर के ट्रैक पर कवच सिस्टम तैनात किया जाए और मार्च 2025 तक 9,000 किलोमीटर के ट्रैक पर ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम स्थापित किया जाए। भविष्य की नई ट्रेनों में कवच 4.0 पहले से ही स्थापित होगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहले चरण में इस तकनीक को 10,000 इंजनों पर तैनात किया जाएगा।
इस कवायद की आवश्यकता जून 2024 में हुई कंचनजंगा ट्रेन दुर्घटना के बाद बढ़ गई थी, जिसमें 11 लोगों की जान चली गई थी। इस हादसे में कवच सिस्टम की अनुपस्थिति ने इसे व्यापक रूप से लागू करने की आवश्यकता को उजागर किया। इससे पहले जून 2023 में ओडिशा के बालासोर में हुई त्रि-ट्रेन टक्कर में 293 लोगों की जान चली गई थी। दोनों घटनाओं में कवच सिस्टम सक्रिय नहीं था जिससे इन हादसों में जानमाल का भारी नुकसान हुआ।