कर्नाटक हाईकोर्ट ने मस्जिद में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने वालों को राहत देने के आदेश को सुप्रीम कोर्टमें चुनौती दी है. खबर है कि उच्च न्यायालय ने उपद्रवियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को इस आधार पर खत्म कर दिया था कि इससे धार्मिक भावनाएं नहीं आहत होती हैं. याचिकाकर्ता हैदर अली ने एडवोकेट जावेदुर रहमान के माध्यम से दाखिल की है, जो शुक्रवार को जस्टिस पंकत मित्तल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच द्वारा सुनवाई जाएगी.
हाईकोर्ट का फैसला
याचिका में दावा किया गया है कि 24 सितंबर 2023 को ऐथूर गांव में बदरिया जामा मस्जिद पर कुछ हिंसक लोग पहुंचे और जय श्री राम के नारे लगाने लगे, जिसके बाद धमकी दी गई कि मुसलमानों को शांति से रहने नहीं दिया जाएगा. दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिली.
गत वर्ष 29 नवंबर को, हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका पर ट्रायल कोर्ट में चलने वाली कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और इस साल 13 सितंबर को राहत दी थी. याचिकाकर्ता का कहना था किहाईकोर्ट ने कार्यवाही रद्द करने में गलती की है क्योंकि पुलिस ने जांच पूरी नहीं की थी और कोर्ट में पूरे सबूतों को पेश नहीं किया जा सका था. साथ ही कहा गया है कि अवैध तरीके से कहीं प्रवेश करना अपराध है.
याचिकाकर्ता ने कहा, ‘तथ्य है कि घटना मस्जिद के अंदर हुई और मुसलमानों की जान को खतरा हुआ. ऐसे में हाईकोर्ट को अंतरिम आदेश जारी करने से पहले इस मामले में पुलिस को जांच पूरी करने की अनुमति देनी चाहिए थी.’ इसके अलावा, यह भी कहा गया कि मस्जिद में जय श्री राम के नारे लगाने को ऐसा बयान माना जा सकता है, जो सांप्रदायिक तनाव बढ़ा सकते हैं.
क्या है मामला?
याचिकाकर्ता ने बताया कि 24 सितंबर, 2023 को रात करीब 10:50 बजे ऐथूर गांव स्थित बदरिया जामा मस्जिद में कुछ लोग घुसे और धमकी देते हुए ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने लगे. आरोपियों ने याचिकाकर्ता को चैन से न रहने देने की धमकी भी दी. इस मामले में बाद में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया. लेकिन आरोपियों को बाद में जमानत मिली. 29 नवंबर 2023 को सुनवाई के बाद, दोनों आरोपियों ने कर्नाटक हाई कोर्ट में ट्रायल कोर्ट के आदेश पर चुनौती दी. 13 सितंबर 2024 को गिरफ्तारी को गलत बताते हुए मामला खत्म कर दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया था हवाला
न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि हिंदू और मुसलमान लोग इलाके में सौहार्दपूर्ण तरीके से रहते हैं, इसलिए आगे की कार्रवाई की अनुमति देना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि आईपीसी की धारा 295ए के तहत हर कृत्य अपराध नहीं बनता है. अदालत ने फिर कहा, “धारा 295ए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों से संबंधित है, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है. यह समझ से परे है कि अगर कोई ‘जय श्री राम’ का नारा लगाता है, तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावना कैसे आहत होगी.”