तालिबान राज की कहानी, आज के अफगानिस्तान में फंसे दो बेटियों के पिता की जुबानी

वो नब्बे का दौर था जब अफगानिस्तान की सड़कों पर भारी बूटों और बंदूकों की आवाजें गूंजने लगीं. तालिबान के आने की मुनादी उससे पहले ही जनाना चीखों ने कर दी. बाजार में इत्र लगाकर घूमती कुछ युवतियों पर तड़ातड़ कोड़े बरसाए जा रहे थे. मिनटों में खुशबू की जगह खून, और रौनक की जगह सन्नाटा छा गया. इसके तुरंत बाद मनाहियों और पाबंदियों की एक फेहरिस्त निकली, जो हर दिन के साथ पसरती चली गई. फास्ट फॉरवर्ड टू 2024…! काबुल और कंधार में एक बार फिर तालिबान है. पहले से ज्यादा शातिर. ज्यादा क्रूर. ज्यादा कट्टर.

मुसीबत सिर्फ महिलाओं पर नहीं, पुरुष भी बारीक रस्सी पर चल रहे हैं, जरा पांव फिसला और नीचे गहरी खाई लीलने को तैयार. काबुल के ऐसे ही एक शख्स सलीम (काल्पनिक नाम) ने फोन पर बात की.

  बात एक हद तक सही भी है. अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की कमान संभाली, दुनिया कोविड से ताजा-ताजा बाहर आई थी. लंबी दूरी को पलभर में पाटने की कोशिश चल रही थी. इस बीच काबुल में तालिबानी झंडा फहरना वैसी ही खबर थी, जैसे पड़ोस में आए-दिन पिटती बीवी के आंसू. अह-तह करके देशों ने सामूहिक सोग मना लिया. यूएन ने बुजुर्गाना बातें कर लीं. बीच-बीच में औरतों पर रोकटोक के चटखारेदार पुर्जे मीडिया में आ गए. इसके बाद बस!

  सख्त पाबंदियों के बीच रहते अफगानी यहां-वहां शरण मांगते फिर रहे हैं. पाकिस्तान ने पिछले साल हजारों अफगानियों को वापस लौटा दिया. पश्चिमी देशों ने आतंकी कहते हुए अपने दरवाजे बंद कर दिए. अब उनके पास कोई रास्ता नहीं, सिवाय तालिबानी सत्ता में फंसकर रहने और उनके कायदे मानने के. 

  ऐसे ही फंसे हुए पिता सलीम से हमारी बात फोन पर हुई. लगभग 40 मिनट चले कॉल पर वे सुनी-अनसुनी कई बातें बताते हैं.  

  15 अगस्त की देर दोपहर रही होगी, जब काबुल में शोरगुल बढ़ गया. सड़कों पर सूटकेस, बैग उठाए लोग ही लोग थे. टैक्सियां भरी हुई थीं. लगता था कि सारा मुल्क ही हमारे शहर में आ चुका है. सब एयरपोर्ट भाग रहे थे. ‘जितनी जल्दी हो, निकल जाओ वरना अंदर ही रह जाओगे.’ मेरे एक साथी ने अलविदा कहते हुए कहा. जिसे जिस देश की मंजूरी मिली,  वहीं भाग रहा था. कोई ईरान गया, कोई पाकिस्तान. कोई कनाडा तो कोई यूरोप. 

  जो मुल्क छोड़कर नहीं जा रहे थे, वे बैंकों की तरफ भाग रहे थे. मैं भी उनमें से एक था. लेकिन मेरी पारी आती, उससे पहले फरमान आ गया कि बेनिफिशियरी बड़ी रकम नहीं निकाल सकते. मैं घर लौट आया. डेढ़ दिनों के भीतर सब कुछ बदल चुका था. 

  आते ही उसने सही-गलत आरोप लगाते हुए कई लोगों को हिरासत में ले लिया. बहुत से लोग चौराहे पर मार दिए गए. मेरा घर चलती सड़क पर है. सजा देते हुए वे चाहते थे कि भीड़ उसे देखे. ताकि बागियों को सबक मिले, और कमजोर दिल मर्द मजबूत बन सकें. चौराहे पर गोलाबारी देखने के बाद मैं घर लौटा तो कानों में मुर्दा चीखों की गंध आ रही थी. लेकिन मैं मजूबत हो चुका था. इसके बाद कई हत्याएं देखीं लेकिन वो डर नहीं लगा. 

‘सब कुछ.’ हजार किलोमीटर दूर बसी आवाज इस बार दूसरी दुनिया से आती लग रही है. ‘बाजारों से हंसी और खुशगप्पियां गायब हो गईं. औरतें गायब हो गईं. जगह-जगह चेकपॉइंट्स हैं, जहां रायफल लिए तालिबानी सैनिक खड़े रहते हैं. इनका काम है, लोगों पर नजर रखना. औरतें या जरा भी ज्यादा उम्र की बच्चियां बिना परदा दिखें तो उन्हें सजा देना. हंसती दिखें तो चेतावनी देना. गुनगुनाने पर रोक है कि इससे मर्दों में चाह जाग जाएगी.

दुकानों पर सजे मेनीक्वीन्स (पुतलों) के सिर काट दिए गए क्योंकि ये मजहब के खिलाफ है.’

हटाए नहीं गए, उन्हें बस ऐसे लिबास में ढांप दिया गया कि शरीर का आकार न दिखे. मुंह-उघाड़ी और हवादार कपड़े पहनी पुतलियों से भी ईमान में फर्क आ सकता है. पुरुष मेनीक्वीन्स के सिर काट दिए गए. मैं हजामत बनवाने जिस दुकान जाता हूं, वहां पोस्टरों का ऊपरी हिस्सा इंक पेंट से छिपा दिया गया. चेहरे और नए ढब की हेयर स्टाइल नहीं दिखनी चाहिए. दाढ़ी भी कुछ खास तरह से ही बनवाई जा सकती है. कोई नया फैशन नहीं. 

  रिपब्लिक (तालिबान से पहले चुनी हुई सरकार) के वक्त शुक्रवार को पार्क-बाजारों में भीड़ होती. लोग परिवार के साथ शहदभरी जलेबियां और अशक खाया करते. आपस में हंसी-मजाक करते. ये सब रुक गया. कुरकुरी जबेलियां खाते हुए आवाज होगी, जो आसपास के लोगों का ध्यान भटका सकती है. 

औरतें स्ट्रीट फूड नहीं खा सकतीं क्योंकि तब उनके हाथ या मुंह परदेदारी से बाहर हो जाएंगे. कुछ रेस्त्रां हैं, वहीं जाकर वे खाना खा सकती हैं लेकिन तभी जब सरपरस्त (बीच-बीच में वे इसे महराम भी कहते हैं, यानी वो पुरुष जो महिला का परिवार हो) साथ हो. 

 शहर में बहुत से छोटे-बड़े बाग हैं, लेकिन औरतों को जाने की इजाजत नहीं. पहले उन्हें और हमें अल्टरनेट दिनों में बांटा गया. वे सोमवार-बुधवार को जातीं, और हम बाकी रोज. फिर उनपर एकदम रोक ही लगा दी गई. तालिबान का कहना है कि नंगी कुदरत और महिलाओं का मेलजोल ठीक नहीं. 

दरअसल इस देश में एक मिनिस्ट्री है- वर्च्यू एंड वाइज. इसका काम ही औरतों पर काबू रखना है. ये लगातार नए-नए फरमान जारी करते हैं कि महिलाएं क्या कर सकती हैं- क्या नहीं. मिसाल के तौर पर हमउम्र पुरुष-स्त्री अगर साथ घूमते दिखें तो पहले उनका रिश्ता पूछा जाएगा, और तसल्ली न होने पर आईडी कार्ड भी मांगा जाएगा. इससे भी बात न बने तो परिवार को फोन किया जाएगा. रिश्ता पति-पत्नी, पिता-बेटी या भाई-बहन का न हो तो सजा मिलनी तय है. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *