सियासत की ज़ुबान ने लांघी सीमा, अब सुप्रीम कोर्ट दिखाएगा जगदीप धनखड़ और निशिकांत दुबे को कानून का आईना?

नई दिल्ली : भारत की सर्वोच्च अदालत और सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं के बीच तनातनी अब खुलकर सामने आ गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे, बीएल संतोष और दिनेश शर्मा द्वारा सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर दिए गए बयानों ने इस विवाद को और भड़का दिया है। अब इन बयानों को लेकर अवमानना की कार्रवाई की मांग उठ रही है।

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने अपने बयान में सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश पर गंभीर आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट देश में गहयुद्ध और धार्मिक युद्ध जैसे हालात पैदा करने का काम कर रही है। सांसद निशिकांत दुबे ने यह भी आरोप लगाया कि न्यायपालिका संसद के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रही है और खुद कानून बना रही है, जो संविधान के खिलाफ है।

निशिकांत दुबे के इन बयानों को अवमानना और मानहानि की श्रेणी में माना जा रहा है। एक वकील ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से अनुरोध किया है कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुकदमा दर्ज किया जाए। हालांकि, अब तक कोई आधिकारिक निर्णय नहीं आया है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर भी उठे सवाल

केरल के एक वकील ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई की मांग की है। हालांकि, उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करना बेहद जटिल है। चूंकि अटॉर्नी जनरल सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं, इसलिए कानूनी कार्रवाई की संभावना कम मानी जा रही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट चाहे तो स्वतः संज्ञान ले सकता है।
जस्टिस बी.आर. गवई का जवाब

मुर्शिदाबाद हिंसा से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम पहले ही कार्यपालिका और विधायिका में हस्तक्षेप के आरोपों से घिरे हैं। तो क्या हम राज्य या केंद्र सरकार को निर्देश दें? बी.आर. गवई अगली बार देश के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं।
जस्टिस गवई का न्यायिक ट्रैक रिकॉर्ड

जस्टिस गवई ने कई ऐतिहासिक फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाई है। जैसे इलेक्टोरल बॉन्ड्स को अवैध घोषित करना, मनीष सिसोदिया को जमानत देना और राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाना। उनके फैसले सुप्रीम कोर्ट की निष्पक्षता और गरिमा को दर्शाते हैं।

आज जब हर फैसला राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है। एक वर्ग कहता है कि कोर्ट विपक्ष के साथ खड़ा है, तो दूसरा कहता है कि सरकार का दबाव है। ऐसे समय में सुप्रीम कोर्ट के लिए सबसे बड़ी चुनौती है अपनी निष्पक्षता और संविधान के प्रति जवाबदेही बनाए रखना।

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