रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति और विरोध में मुसलमान; क्या है दिल्ली का ईदगाह वाला घमासान

राजधानी दिल्ली के सदर बाजार स्थित शाही ईदगाह के पास रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति स्थापित करने को लेकर घमासान मचा हुआ है। मुस्लिम समाज यहां मूर्ति स्थापित किए जाने से नाराज है। भारी सुरक्षा व्यवस्था में शनिवार को एक बार फिर यहां मूर्ति स्थापित करने के लिए काम शुरू कर दिया गया। गुरुवार शाम यहां भीड़ के उग्र होने के बाद शुक्रवार को काम रोक दिया गया था।आखिर क्यों यहां मूर्ति लगाई जा रही है, मुस्लिम समाज को क्यों आपत्ति है, आइए आपको पूरी बात बताते हैं।

गुरुवार शाम को ईदगाह के पास लगे पुलिस बैरिकेड को बड़ी संख्या में लोगों ने तोड़ दिया। सुरक्षाकर्मियों से धक्का मुक्की भी की। इस दौरान पुलिस ने लोगों से शांत रहने और अपने-अपने घरों को जाने के लिए कहा, लेकिन कोई नहीं माना। बड़ी मुश्किल से भीड़ तितर-बितर हुई। फिलहाल स्थानीय अमन कमेटी की बैठक से माहौल सामान्य रखने की कोशिश जारी है। ईदगाह के पास भारी संख्या में पुलिसबल तैनात कर दिया गया है। एडिशनल डीसीपी सुधांशु वर्मा हालात की निगरानी कर रहे हैं।

सदर बाजार पुलिस ने ईदगाह पार्क में रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाने के मामले में गुरुवार को दो एफआईआर दर्ज की। इसमें एक रिपोर्ट सरकारी कर्मचारी पर हमला करने और दूसरी दो समुदायों में वैमनस्य फैलाने को लेकर है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा था। इसमें ईदगाह पर हिंसक प्रदर्शन करने की बात कही जा रही थी। इससे माहौल खराब होने का खतरा था। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए संबंधित सोशल मीडिया साइट की पहचान की। सभी प्लेटफॉर्म से वीडियो को हटाकर एफआईआर दर्ज की।

दरअसल, पार्क से कुछ दूरी पर झंडेवाला मंदिर के पास चौराहे पर रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति लगी है। यहां सड़क चौड़ीकरण और विकास कार्यों की वजह से मूर्ति किसी दूसरी जगह स्थापित करने का फैसला किया गया। एमसीडी और डीडीए ने मूर्ति को शाही ईदगाह के पास पार्क में स्थापित करने का फैसला किया। चूंकि यह पार्क ईदगाह से सटा हुआ है और ईद जैसे खास मौकों पर जब मुस्लिम समुदाय के हजारों लोग यहां पहुंचते हैं तो वे इस पार्क में भी नमाज पढ़ते हैं। इस वजह से वे यहां मूर्ति लगाने का विरोध कर रहे हैं। उनकी दलील है कि इस्लाम में किसी भी मूर्ति के सामने सजदा करने की मनाही है।

शाही ईदगाह प्रबंधन समिति ने यहां मूर्ति लगाए जाने के फैसले को हाई कोर्ट में भी चुनौती दी, लेकिन उन्हें दो-दो बार फटकार सुननी पड़ी और माफी भी मांगनी पड़ी है। सिंगल जज की बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया तो डबल बेंच के सामने चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने कहा रानी लक्ष्मीबाई ‘नेशनल हीरो’ हैं और इतिहास को सांप्रदायिक राजनीति में नहीं बांटना चाहिए। चीफ जस्टिस मनमोहन की अगुआई वाली बेंच ने कहा, ‘इसे धार्मिक रंग दिया जा रहा है। यह गर्व का विषय है कि यहां मूर्ति लग रही है। एक तरफ हम महिला सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं… वह नेशनल हीरो हैं और आप सांप्रदायिक राजनीति कर रहे हैं।’ कोर्ट ने सिंगल जज के लिए इस्तेमाल किए गए शब्दों पर भी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने माफीनामा मांगते हुए याचिका को वापस लेने को कहा। कोर्ट ने कहा, ‘नीयत सांप्रदायिक राजनीति की लग रही है। रानी लक्ष्मीबाई का धर्म से कुछ लेना देना नहीं। अगर यह आपकी भी जमीन होती तो आपको खुद आगे आना चाहिए था।’

कमिटी ने 1970 के एक गैजेट नोटिफिकेशन का भी हवाला दिया था जिसमें कहा गया था कि शाही ईदगाह पार्क मुगल काल में बनी संपत्ति है। यहां नमाज पढ़ी जाती है। यहां एक साथ 50 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं। हाई कोर्ट ने साफ कर दिया कि जिस जमीन पर मूर्ति लगाई जा रही है उसका मालिकाना हक डीडीए के पास है। इसके रखरखाव की जिम्मेदारी भी इसी की है।

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