क्या थी सोनिया गांधी की NAC, जिसे लेटरल एंट्री विवाद में बार-बार गिना रही भाजपा

देश की शीर्ष नौकरशाही में 45 पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती वाले विज्ञापन को नरेंद्र मोदी सरकार ने वापस ले लिया है। पीएम मोदी के आदेश पर यूपीएससी ने इस नोटिफिकेशन को वापस लिया है। इसे लेकर कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी की चेयरमैन प्रीति सुदन को पत्र लिखा था कि नोटिफिकेशन वापस लिया जाए। इस पत्र में उन्होंने लेटरल एंट्री की परंपरा 2005 में यूपीए सरकार की ओर से शुरू करने की बात कही। इसके अलावा सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का भी जिक्र किया कि कैसे उसके माध्यम से पीएमओ को कंट्रोल किया जाता था और वह सुपर-ब्यूरोक्रेसी बन गई थी।

इस परिषद में शामिल सदस्यों को लेटरल एंट्री के माध्यम से ही लिया गया था। यूपीए सरकार के दौर में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को लेकर अकसर सवाल उठते थे और कहा जाता था कि सोनिया गांधी इसके जरिए रिमोट से मनमोहन सिंह सरकार को चला रही हैं।

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन यूपीए सरकार के 2004 में गठन के तुरंत बाद ही 4 जून 2004 को किया गया था। इसकी तेयरपर्सन सोनिया गांधी खुद थीं और इसी के चलते आरोप लगता था कि वह सरकार को पर्दे के पीछे से चला रही हैं। वहीं यूपीए सरकार का कहना था कि सलाहकार परिषद का उद्देश्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए सलाह देना है। इस परिषद का कार्यकाल मई 2014 तक रहा, जब तक कि मनमोहन सिंह की सरकार बनी रही। इस सलाहकार परिषद में सोनिया गांधी के अलावा कई सामाजिक कार्यकर्ता, अर्थशास्त्री, नौकरशाही, राजनीतिज्ञ और उद्योगपति शामिल थे।

इनमें से अधिकतर लोग लेटरल एंट्री के माध्यम से ही आए थे। सोनिया गांधी को सलाहकार परिषद की चेयरपर्सन के तौर पर कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला था। इस परिषद में मिहिर शाह, नरेंद्र जाधव, आशीष मंडल, प्रोफेसर प्रमोद टंडन, दीप जोशी, फराह नकवी, प्रोफेसर एम.एस स्वामीनाथन, ज्या द्रेज, हर्ष मंदर, माधव गाडगिल, अरुणा रॉय जैसे लोग शामिल थे। इनमें से कई ऐसे लोग थे, जिनके नाम पर कई बार विवाद भी हुए थे।

इस सलाहकार परिषद की आलोचना भी होती थी क्योंकि कहा जाता था कि यूपीए सरकार का एजेंडा यही तय करती है। इसके द्वारा ही मनरेगा, खाद्य सुरक्षा बिल, शिक्षा का अधिकार और सूचना का अधिकार जैसे कानूनों के सुझाव दिए गए थे। वहीं आलोचकों का कहना था कि यह परिषद एक समानांतर कैबिनेट की तरह है, जो संविधान के खिलाफ है। इसके अलावा कैबिनेट की बजाय परिषद से बिलों का तैयार होना भी विरोध का कारण बना और कहा गया कि इससे संविधान की मर्यादा का हनन होता है।

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