भारतीय संविधान में कहां से आया ‘इमरजेंसी’ का प्रावधान? इसी से तानाशाह बना हिटलर….

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को कांग्रेस पर निशाना साधते हुए लोकसभा में कहा कि संविधान किसी एक पार्टी की देन नहीं है लेकिन इसके निर्माण के कार्य को एक पार्टी विशेष द्वारा ‘हाईजैक’ करने की कोशिश हमेशा की गई है। रक्षा मंत्री ने लोकसभा में ‘भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा’ पर चर्चा के दौरान कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। राजनाथ सिंह ने 1975 में देश में आपातकाल लागू किए जाने का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हमने आपातकाल के काले दिनों में भी संविधान के मूल चरित्र को चोट पहुंचाने का मजबूती से विरोध किया।’’ उन्होंने भावुक होते हुए कहा, ‘‘मैंने खुद आपातकाल के दंश को झेला है। मैं 18 महीने जेल में रहा। मुझे मेरी मां की मृत्यु के बाद उन्हें मुखाग्नि देने के लिए भी परोल तक नहीं दी गई।’’ अब जब इमरजेंसी को लेकर चर्चा एक बार फिर से जोर पकड़ रही है तो ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर हमारे इस महान संविधान में इमरजेंसी का प्रावधान आया कैसे? आइए इसका पूरा इतिहास समझते हैं।

भारतीय संविधान में इमरजेंसी का प्रावधान

भारतीय संविधान में आपातकाल के प्रावधानों को बड़े पैमाने पर जर्मनी के वाइमर संविधान से प्रेरित माना जाता है। इन प्रावधानों को संविधान सभा में भारत के तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक हालातों को ध्यान में रखकर शामिल किया गया।

आपातकाल अपनाने की पृष्ठभूमि और कारण

भारत की स्वतंत्रता के बाद देश को राजनीतिक स्थिरता, आंतरिक शांति, और बाहरी खतरों से सुरक्षा सुनिश्चित करनी थी। विभाजन की त्रासदी और देश में सांप्रदायिक तनाव ने यह स्पष्ट कर दिया कि संविधान में ऐसे प्रावधान होने चाहिए जो संकट के समय में सरकार को असाधारण शक्ति प्रदान कर सकें। जर्मनी में वाइमर संविधान के तहत भी ऐसे ही प्रावधान थे, जो सरकार को राष्ट्रीय संकट के समय में शक्तियां सौंपते थे।

आपातकाल के प्रकार

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352, 356 और 360 में तीन प्रकार के आपातकाल का प्रावधान है:

  • राष्ट्रीय आपातकाल – बाहरी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह की स्थिति में।
  • राज्य आपातकाल – यदि राज्य सरकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार काम करने में विफल हो।
  • आर्थिक आपातकाल – यदि देश की वित्तीय स्थिरता को खतरा हो।

संविधान सभा में बहस

संविधान सभा में आपातकालीन प्रावधानों पर गंभीर चर्चा हुई। कई सदस्यों ने चिंता व्यक्त की कि यह लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर कर सकता है। डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने तर्क दिया कि आपातकालीन शक्तियां केवल असाधारण परिस्थितियों में इस्तेमाल की जानी चाहिए। कई सदस्यों ने इन प्रावधानों को “तानाशाही शक्तियों का माध्यम” कहकर आलोचना की। लेकिन अंततः यह निर्णय लिया गया कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को स्थिर रखने और देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ये प्रावधान आवश्यक हैं।

भारत में आपातकाल का इतिहास

भारत में अब तक तीन बार आपातकाल लागू किया गया है:

1962 – चीन-भारत युद्ध

चीन के साथ युद्ध के दौरान देश की सुरक्षा को खतरा हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की।

1971 – भारत-पाकिस्तान युद्ध

इस दौरान बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम में भारत की भागीदारी के कारण आपातकाल लगाया गया। यह निर्णय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लिया।

1975-1977 – आंतरिक आपातकाल

यह सबसे विवादास्पद आपातकाल था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक अस्थिरता और न्यायालयों में चल रहे मुकदमों के आधार पर आपातकाल लागू किया। इसे व्यापक रूप से सत्ता के दुरुपयोग के रूप में देखा गया। प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया और राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार किया गया।

आपातकाल के प्रभाव और आलोचना

1975 का आपातकाल भारतीय लोकतंत्र पर एक काला धब्बा माना जाता है। इसने यह सवाल खड़ा किया कि सरकार को कितनी असाधारण शक्तियां मिलनी चाहिए। इस घटना के बाद 44वें संविधान संशोधन (1978) के माध्यम से आपातकाल लागू करने की प्रक्रिया को कठिन बनाया गया। अब आपातकाल लागू करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति और संसद की मंजूरी अनिवार्य है।

भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधान, देश की सुरक्षा और स्थिरता के लिए जरूरी हैं। लेकिन 1975 के आपातकाल के बाद यह साफ हो गया कि इनका दुरुपयोग न हो, इसके लिए संवैधानिक संशोधनों और सतर्कता की आवश्यकता है। भारत ने इस अनुभव से लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने का सबक लिया।

जर्मनी के वाइमर संविधान और भारतीय संविधान की तुलना

वाइमर संविधान (1919-1933) और भारतीय संविधान (1950 से लागू) दोनों लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित हैं, लेकिन इनकी संरचना, उद्देश्य, और प्रभाव में महत्वपूर्ण अंतर हैं।

1. लोकतांत्रिक ढांचा

वाइमर संविधान:

  • वाइमर गणराज्य का संविधान जर्मनी में प्रथम विश्व युद्ध के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने का प्रयास था।
  • इसमें संसदीय प्रणाली थी लेकिन राष्ट्रपति को व्यापक आपातकालीन शक्तियां दी गई थीं।
  • अनुच्छेद 48 ने राष्ट्रपति को आपातकालीन परिस्थितियों में कानून बनाने और सिविल अधिकारों को निलंबित करने की शक्ति दी।

भारतीय संविधान:

  • भारत का संविधान एक संपूर्ण लोकतांत्रिक ढांचे का निर्माण करता है जिसमें न्यायपालिका, कार्यपालिका, और विधायिका के बीच स्पष्ट संतुलन है।
  • राष्ट्रपति के पास आपातकालीन शक्तियां हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल संसद की मंजूरी के बिना नहीं हो सकता।

2. संविधान निर्माण प्रक्रिया

वाइमर संविधान:

  • इसे जर्मन नेशनल असेंबली ने तैयार किया।
  • इसका मुख्य उद्देश्य जर्मनी में लोकतंत्र की स्थापना और युद्ध के बाद के संकटों को हल करना था।

भारतीय संविधान:

  • इसे संविधान सभा द्वारा तीन साल के गहन विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया।
  • इसका उद्देश्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना था।

3. आपातकालीन प्रावधान

वाइमर संविधान:

  • अनुच्छेद 48 के तहत राष्ट्रपति को असाधारण शक्तियां दी गई थीं।
  • इसका अत्यधिक दुरुपयोग हुआ, खासकर एडॉल्फ हिटलर द्वारा।
  • इसे वाइमर गणराज्य के पतन का प्रमुख कारण माना जाता है।

भारतीय संविधान:

  • भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधान (अनुच्छेद 352, 356, 360) शामिल हैं।
  • 1975 के आपातकाल के दुरुपयोग के बाद, 44वें संविधान संशोधन के जरिए इन प्रावधानों को सीमित किया गया।

4. नागरिक अधिकार और कर्तव्य

वाइमर संविधान:

  • इसमें नागरिक अधिकारों की गारंटी दी गई थी, जैसे कि स्वतंत्रता, समानता, और अभिव्यक्ति का अधिकार।
  • लेकिन अनुच्छेद 48 के तहत आपातकाल के दौरान ये अधिकार निलंबित हो सकते थे।

भारतीय संविधान:

  • मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-35) नागरिकों को व्यापक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।
  • आपातकाल के दौरान भी इन अधिकारों के हनन पर न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।

5. संघीय ढांचा

वाइमर संविधान:

  • यह एक संघीय संविधान था जिसमें राज्यों को कुछ हद तक स्वायत्तता दी गई थी।
  • लेकिन संघीय ढांचे को राष्ट्रपति के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता था।

भारतीय संविधान:

  • भारत एक संघीय व्यवस्था है जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट शक्तियों का विभाजन है।
  • राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356) के तहत राज्यों को भंग किया जा सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया सीमित और न्यायिक समीक्षा के अधीन है।

6. दुरुपयोग और प्रभाव

वाइमर संविधान:

  • अनुच्छेद 48 का दुरुपयोग नाजी पार्टी ने किया, जिससे लोकतंत्र समाप्त हो गया और हिटलर का उदय हुआ।
  • यह दिखाता है कि कमजोर प्रावधानों का लोकतंत्र पर कितना नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

भारतीय संविधान:

  • 1975 के आपातकाल में अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग हुआ, लेकिन इसके बाद संशोधन करके इसे अधिक मजबूत और पारदर्शी बनाया गया।
  • भारतीय संविधान ने लोकतंत्र को संरक्षित रखने में अपनी क्षमता साबित की है।

एडॉल्फ हिटलर ने वाइमर संविधान का दुरुपयोग कैसे किया?

एडॉल्फ हिटलर ने जर्मनी के वाइमर संविधान के अनुच्छेद 48 का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को आपातकालीन शक्तियां प्रदान करता था, जिससे वे संसद को बाईपास कर कानून लागू कर सकते थे।

दुरुपयोग की प्रमुख घटनाएं:

1933 का राइखस्टाग अग्निकांड:

राइखस्टाग (जर्मन संसद) में आग लगने की घटना को हिटलर ने “कम्युनिस्ट विद्रोह” बताकर राजनीतिक विरोधियों को दबाने का बहाना बनाया।

राष्ट्रपति हिंडनबर्ग ने हिटलर के दबाव में “राइखस्टाग फायर डिक्री” जारी की, जिससे नागरिक अधिकार निलंबित कर दिए गए।

आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल:

हिटलर ने अनुच्छेद 48 का इस्तेमाल करके अपनी नाजी पार्टी को पूर्ण नियंत्रण दिया। उसने राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया और प्रेस, सभा, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त कर दी।

संसदीय प्रणाली का अंत:

1933 के “एनेबलिंग एक्ट” (सशक्तिकरण अधिनियम) के माध्यम से हिटलर ने संसद को अप्रासंगिक बना दिया। इसके बाद हिटलर को बिना संसद की अनुमति के कानून बनाने की असीमित शक्तियां मिल गईं।

परिणाम:

हिटलर के इन कार्यों ने वाइमर गणराज्य को समाप्त कर दिया और नाजी तानाशाही की स्थापना की। वाइमर संविधान की कमजोरियों, विशेषकर अनुच्छेद 48, का दुरुपयोग करके हिटलर ने लोकतंत्र को खत्म कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका तैयार की।

वाइमर संविधान और भारतीय संविधान दोनों में लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास था, लेकिन वाइमर संविधान की कमजोरियां (विशेषकर अनुच्छेद 48) इसके पतन का कारण बनीं। भारतीय संविधान ने वाइमर की गलतियों से सीखा और संतुलित प्रावधानों के साथ लोकतंत्र को संरक्षित करने का प्रयास किया। भारतीय संविधान ने यह साबित कर दिया कि मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाएं और संवैधानिक प्रावधान किसी भी संकट से निपटने में सहायक हो सकते हैं।

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