भक्ति करने के लिए सबसे अच्छी जगह कौन सी है? प्रेमानंद महाराज ने बताया असल राज

वृंदावन के जाने-माने संत प्रेमानंद महाराज ने अपने नए प्रवचन के दौरान कुछ ऐसे सवालों के जवाब दिए हैं जो अक्सर लोगों के जेहन में होते हैं। वहीं एक बार फिर से उन्होंने नाम जप करने का सरल तरीका बताया है। प्रेमानंद महाराज के प्रवचन के दौरान लोग उनसे एकांतित वार्तालाप करते हैं और इस दौरान अपने सवालों को पूछते हैं। एक-एक करके प्रेमानंद महाराज की ओर से सारे सवालों के जवाब दिए जाते हैं। बीते प्रवचन के दौरान एक शख्स ने उनसे पूछा कि भक्ति के लिए सबसे सही जगह कौन सी है? वहीं दूसरा सवाल नाम जप से जुड़ा हुआ है। नीचे इनके जवाब विस्तार से पढ़ें।

भक्ति करने के लिए सबसे सही जगह

इस सवाल का जवाब देते हुए प्रेमानंद महाराज ने कहा कि नाम…भगवान का नाम। तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति…भगवान का विस्मरण होने पर ऐसी व्याकुलता हो जाए कि जैसे मछली को पानी से अलग करो तो तड़पने लगती है। अगर ऐसा होने लगे तो समझ जाओ की हमारी भक्ति अब रंग ला रही है। भक्ति का स्थान नाम और अखंड स्मृति निरंतर भगवान का स्मरण…यही भक्ति का स्वरुप है। हमारे जितने आचरण हैं, वो सब भगवान को अर्पित हो। निरंतर भगवान का स्मरण हो। यही सर्वोत्तम भक्ति का स्थान है।

नाम जप में ऐसे उत्पन्न होगी रुचि

इसी प्रवचन के दौरान एक बार फिर से प्रेमानंद महाराज ने नाम जप को लेकर बात की। एक श्रद्धालु ने पूछा कि नाम जप से ही उद्धार होगा लेकिन इसके लिए रुचि कैसे उत्पन्न हो? इस पर प्रेमानंद महाराज ने बताया कि रोजं संतों के भजन सुनने से होगा। रोज महिमा सुनने को मिलेगी। आप यहां नहीं आ सकते हैं तो मोबाइल में तो सुन ही सकते हैं ना। तो हमारे अंदर रुचि पैदा होगी। जो हम सुनते हैं, वही मनन होता है। जो हमारी महातबुद्धि नाम जप में हो जाए जैसे हम रास्ते में जा रहे हैं तो पांच रुपया पड़ा हो। केवल पांच रुपया। हमारी महातबुद्धि कि पैर रुक जाएंगे या नहीं। मन रुक जाएगा कि नहीं रुक जाएगा। अच्छा अगर आप लांघ के आगे चले जाओ तो मन बार-बार चिंता करेगा कि नहीं करेगा? वहीं 500 का पड़ा हो तो झुककर उठाने की इच्छा आ जाएगी। रुपये में देखो हमारा मन लग गया। अगर हमारे मन की वृत्ति धन रुप मानकर भगवान में लग जाए कि परम धन राधा नाम आधार। भगवान के नाम से बड़ा बल कुछ भी नहीं है। कोई बड़ा ज्ञान नहीं है। कोई बड़ी संपत्ति नहीं है। उनके नाम से बढ़कर कोई साधना नहीं है। कोई पुण्य नहीं है। भगवान भी दूसरे नंबर पर हैं। पहले उनका नाम है। इस तरह से उन्होंने बताया कि ये सब जानने के बाद ही रुचि आएगी और ऐसे में संतों की वाणी सुनना जरूरी है।

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