लद्दाख में भारत-चीन के बीच रिश्तों की बर्फ पिघलाने में क्यों हो रही देरी, क्या है 7 महीने लंबे गैप की वजह?

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव कम करने के लिए की जा रही कोर कमांडर स्तर की बातचीत में लंबा गैप देखने को मिल रहा है. 21वें दौर की बातचीत को करीब 7 महीने हो चुके हैं, लेकिन अब तक 22वें दौर की बातचीत नहीं हुई है. बातचीत में हो रही इस देरी ने चिंता बढ़ा दी है. दरअसल, जून 2020 से बातचीत का यह दौर शुरू हुआ है और तब से लेकर अब तक यह सबसे लंबा गैप है. इससे पहले 21वें दौर की उच्च स्तरीय सैन्य बैठक 19 फरवरी 2024 को हुई थी.  

बता दें कि पूर्वी लद्दाख में LAC पर चल रहे गतिरोध को हल करने के लिए शुरू की गई कमांडर-स्तरीय बैठक से शांति और स्थिरता बनाए रखने में काफी मदद मिली है. हालांकि, 21वें दौर की बैठक के बाद दोनों पक्षों के शांति बनाए रखने की प्रतिबद्धता का बयान देने के बाद भी कोई स्पष्ट समाधान नहीं हो पाया है. इसके बाद भी अधिकारियों के बीच जमीनी स्तर पर लगातार संचार हो रहा है. लेकिन फरवरी 2024 के बाद कमांडर स्तर की बातचीत नहीं हुई.

हालांकि, इस बीच परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (WMCC) की बैठकों के जरिये चर्चा जारी है. लेकिन उच्च स्तरीय सैन्य बातचीत में देरी के पीछे के कारणों के बारे में अटकलें बढ़ रही हैं. मेजर जनरल अशोक कुमार (सेवानिवृत्त) सहित रक्षा विशेषज्ञों का सुझाव है कि मुद्दों को हल करने में शुरुआती प्रगति हो सकती है, खासकर पेट्रोलिंग के अधिकार और डिसइंगेजमेंट के संबंध में बातचीत रुकी हुई लगती है. इसमें खासतौर पर देपसांग के मैदान और डेमचोक जैसे अहम इलाके शामिल हैं.

मेजर जनरल अशोक ने कहा कि शुरुआती सफलताओं, जैसे कि कुछ टकराव बिंदुओं पर आपसी अलगाव के बावजूद आगे की प्रगति चमत्कारिक रही है. सैन्य कमांडर उच्च राजनीतिक हस्तक्षेप की प्रतीक्षा कर रहे हैं. उन्होंने कहा,’ बातचीत में अंतराल यह संकेत दे सकता है कि दोनों राष्ट्र एक ऐसे समाधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिसे जमीन पर लागू किया जा सके, लेकिन भविष्य की बातचीत के बारे में स्पष्टता की कमी चिंताजनक है.’

हाल ही में एक साक्षात्कार में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने डेवलपमेंट को स्वीकार किया था, लेकिन इस बात पर जोर दिया था कि गश्त के अधिकार और पूर्ण डी-एस्केलेशन से संबंधित मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं. उनकी टिप्पणियां भारत के इस रुख से मेल खाती हैं कि भले ही सैनिकों की वापसी आंशिक रूप से हो गई है, लेकिन डी-एस्केलेशन की प्रक्रिया और गहरी रणनीतिक चिताएं चुनौती बनी हुई हैं. दरअसल, दोनों देश एलएसी पर सैन्य उपस्थिति बनाए रखे हुए हैं, इसलिए इस देरी के परिणाम क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं.

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